मध्य प्रदेश की राजनीति संकट के दौर से गुजर रही है. जिसकी चर्चा अब राजस्थान में भी चलने लगी है. बता दे कि कांग्रेस और भाजपा के दफ्तर हर तरफ मध्य प्रदेश में छाए सियासी संकट की चर्चा होती रही. राजनीतक गलियारों से लेकर आइएएस और आइपीएस अधिकारियों में चर्चा का विषय यही रहा कि क्या राजस्थान में भी मध्य प्रदेश दोहराया जाएगा. हालांकि अधिकांश की राय थी कि राजस्थान में मध्य प्रदेश दोहराना मुश्किल लगता है. इसका प्रमुख कारण कांग्रेस और भाजपा के बीच विधायकों की संख्या का बड़ा अंतर व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मजबूत पकड़ माना गया.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट और गहलोत के बीच पिछले 14 माह से चल रही खींचतान को चर्चा का विषय बनाते हुए भाजपा नेता यह जरूर कहते हैं कि राजनीतिक में कुछ भी असंभव नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने को लेकर सचिन पायलट और उनके समर्थक पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह एवं विधायक प्रशांत बैरवा की सोशल मीडिया की पोस्ट को लेकर यह माना जा रहा है कि राजस्थान में चाहे मध्यप्रदेश जैसे हालात नहीं बनें,लेकिन गहलोत की राह आसान नहीं है. एक तरफ जहां गहलोत ने सिंधिया को अवसरवादी बताते हुए कहा कि वे पहले ही चले जाते तो ठीक था, वहीं पायलट ने नरम रुख दिखाते हुए कहा कि ज्योतिरादित्य का इस तरह भाजपा में शामिल होना दुर्भाग्यपूर्ण है.
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इस मामले को लेकर उन्होने कहा कि उनके भाजपा में जाने की बजाए यदि मामला कांग्रेस के भीतर ही सुलझ जाता तो बेहतर होता. वहीं, पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने मीडिया में कहा कि ज्योतिरादित्य का जाना हमारे लिए नुकसान और दूसरी पार्टी का लाभ है. उन्होंने कहा कि ज्योतिरादित्य को शुभकामनाएं देता हूं. पायलट समर्थक विधायक प्रशांत बैरवा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो फैसला किया होगा कुछ सोच समझा कर किया होगा. भारतीय राजनीति में हर आदमी को अधिकार है कि वो किसी भी पार्टी को ज्वाइन कर सकता है.
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