कोलकाता: रामनवमी शोभायात्रा के दौरान पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा को लेकर कोलकाता उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत ने भी माना कि महज 10-15 मिनट में पत्थरों को छत पर नहीं ले जाया जा सकता। इसलिए, ये स्पष्ट है कि, हिंसा की तैयारी पहले से ही कर ली गई थी। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने इस हिंसा की जाँच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से कराने को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
रामनवमी पर पहले से थी हिंसा की तैयारी:-
दरअसल, भाजपा विधायक शुभेंदु अधिकारी ने कोलकाता उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में अधिकारी ने रामनवमी के दौरान बंगाल में भड़की सांप्रदायिक हिंसा की जाँच NIA से कराए जाने की माँग की थी। इस मामले में, सोमवार (10 अप्रैल) को सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के कार्यवाहक चीफ जस्टिस टीएस शिवगनानम और जस्टिस हिरणमय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा है कि हिंसा के लिए पहले से साजिश रची गई थी। मगर, इसे रोका नहीं जा सका। स्पष्ट है कि यह (हिंसा) खुफिया तंत्र की नाकामी की वजह से हुआ। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने ये संकेत भी दे दिए हैं कि बंगाल हिंसा की जाँच NIA को सौंपी जा सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अदालत ने कहा है कि यह मामला बेहद गंभीर लग रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि हिंसा के लिए पहले से योजना बना ली गई थीं। इसलिए केंद्रीय जाँच एजेंसी हिंसा के इस मामले में अधिक बेहतर तरीके से जाँच कर सकती है। अदालत ने यह भी कहा है कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को पेलेट गन और आँसू गैस का सहारा लेना पड़ा। इसको देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मामला गंभीर था। हिंसा में तलवारें, बोतलें, टूटे शीशे और तेजाब का उपयोग किया गया और इंटरनेट पर बैन लगा दिया गया। इससे पता चलता है कि हिंसा बड़े पैमाने पर हुई थी।
ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी के कारण हुई हिंसा:-
हाई कोर्ट ने कहा है कि, 'रिपोर्ट्स से पता चलता है कि हिंसा के लिए पहले से ही तैयारी कर ली गई थी। आरोप है कि लोगों ने छतों से पत्थर फेंके थे। जाहिर है कि 10-15 मिनट के अंदर तो पत्थर छत पर नहीं लाए जा सकते। यह खुफिया तंत्र की नाकामी है। यहाँ समस्या दो हैं। पहली समस्या यह है कि हिंसा दो समूहों के बीच हुई है। वहीं, दूसरी समस्या यह है कि एक तीसरा समूह इस हिंसा का अनुचित फायदा उठा सकता है। ऐसी हालत में इसकी जाँच केंद्रीय जाँच एजेंसी द्वारा करवाई जानी चाहिए। अगर, बंगाल पुलिस इस मामले की जाँच करती है, तो उसके लिए यह पता लगाना कठिन होगा कि इस हिंसा से किसको लाभ हो रहा है।' कोलकाता हाई कोर्ट के जज ने यह भी कहा कि, 'पिछले 4-5 महीनों में उच्च न्यायालय ने बंगाल सरकार को 8 आदेश भेजे हैं। ये सभी मामले धार्मिक आयोजनों के दौरान हुई हिंसा से जुड़े हुए हैं। क्या यह कुछ और नहीं दर्शाता है? मैं बीते 14 वर्षों से जज हूँ। मगर अपने पूरे करियर में ऐसा कभी नहीं देखा।'
हिंसा के लिए ममता सरकार पर क्यों उठ रहे सवाल:-
बता दें कि, सीएम ममता बनर्जी ने हिंसा के बाद कहा था कि, मुस्लिम रमजान के महीने में कोई गलत काम कर ही नहीं सकते, शोभायात्रा वाले लोग ही अपना जुलुस लेकर मुस्लिम इलाके में घुसे और आपत्तिजनक नारे लगाए, जिससे हिंसा भड़क गई। ममता के इस बयान के बाद मीडिया में भी ऐसी ही खबरें चलीं। हालाँकि, सोशल मीडिया पर शोभायात्रा पर पथराव करते लोगों के वीडियो देखने को मिले हैं। रामनवमी से पहले भी ममता बनर्जी ने एक बयान में चेतावनी देते हुए कहा था कि, 'शोभायात्रा के दौरान किसी मुस्लिम के घर हमला हुआ तो उसे छोड़ूंगी नहीं।' अब गौर करने वाली बात ये भी है कि, एक तरफ ममता बनर्जी कह रहीं हैं कि, जुलुस वाले मुस्लिम इलाके में क्यों घुसे, वहीं कोलकाता हाई कोर्ट का कहना है कि, बंगाल पुलिस द्वारा तय किए गए मार्ग से ही जुलुस निकाला गया। इस पर सवाल ये उठता है कि, यदि मुस्लिम इलाके में हिंसा की आशंका थी, तो पुलिस ने वहां से जुलुस निकालने की अनुमति क्यों दी ? और वो कौन से आपत्तिजनक नारे थे, जिन्हे पुलिस ने नहीं सुना, या फिर सुना भी, तो जुलुस वालों को वो नारे लगाने नहीं रोका ? और यदि नारे आपत्तिजनक थे भी, तो मुस्लिम समुदाय के लोग पुलिस में शिकायत कर सकते थे, शोभायात्रा पर पथराव क्यों किया ?
बता दें कि, ममता बनर्जी खुद भी कई बार जय श्री राम के नारों से चिढ़ती हुईं नज़र आई हैं। कई बार कार्यक्रमों में जय श्री राम का नारा लगने से ममता मंच छोड़ चुकी हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि, ममता बनर्जी को इस नारे से आपत्ति है और हो सकता है कि, रामनवमी के जुलुस में जब यह नारा लगा हो, तो ममता समर्थक भड़क गए हों और हमला कर दिया हो। हालाँकि, सच्चाई क्या है, इसका पता लगाने पटना हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस के नेतृत्व में एक टीम बंगाल पहुंची है, लेकिन उन्हें दंगा प्रभावित इलाके में जाने ही नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि, क्या ममता सरकार दंगों की सच्चाई छुपाने का प्रयास कर रही है ?
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