नई दिल्ली: भारत की महिला भालाफेंक एथलीट अनु रानी आठ बार राष्ट्रीय रिकॉर्ड ध्वस्त कर चुकी है। उन्होंने पिछला रिकॉर्ड मार्च में फेडरेशन कप में तोड़ा था। मेरठ के बहादुरपुर गांव की एथलीट 60 मीटर से ऊपर की थ्रो फेंकने वालीं देश की प्रथम महिला खिलाड़ी हैं। तीन वर्ष पूर्व अनु रानी ने दोहा में विश्व एथलेटिक्स के फाइनल्स में पहुंचकर इतिहास रच दिया था। अनु की कामयाबी के पीछे संघर्षों की एक लम्बी दास्ताँ है।
किसान परिवार में जन्मीं अनु ने कभी यह नहीं सोचा था कि बचपन में खेतों में गन्ना फेंकना भालाफेंक का पहला सबक होगा। शुरुआत में जब खेलों में कदम आगे बढ़ाया तो लोगों के ताने भी झेलने पड़े। शुुरुआत में तो ट्रेनिंग भी छिप-छिपकर लेती थीं। सात वर्ष पूर्व लखनऊ में अंतर राज्य चैंपियनशिप में जब पहली बार राष्ट्रीय रिकॉर्ड ध्वस्त किया, तो उसके बाद फिर मुड़कर नहीं देखा। अनु बताती हैं कि कोरोना के दौर में काफी दिक्कतें आईं। विदेशों में प्रतियोगिताएं कम मिलीं। देश में तो प्रैक्टिस के लिए उन्हें सही जोड़ीदार की कमी महसूस होती है। ओलंपिक में कड़ी चुनौती के बीच उन्हें अपने बेहतर प्रदर्शन की आशा है। एशियाई खेलों में ब्रोंज मेडल जीतने वालीं एथलीट ने पिछले माह अंतर राज्य एथलेटिक्स 62.83 मीटर की थ्रो फेंकी, किन्तु 64 मीटर के ओलंपिक क्वालिफाइंग मार्क को हासिल नहीं कर सकीं। उन्हें रोड टू टोक्यो में 18वीं रैंकिंग के चलते ओलंपिक में हिस्सा लेने का चांस मिला।
अनु बताती हैं कि शुरुआत में ट्रेनिंग के लिए काफी आर्थिक समस्याएं आईं। भाला खरीदने की तो छोड़ो महंगे स्पोर्ट्स शूज भी नहीं थे। भाई के बड़े जूतों को पहनकर प्रैक्टिस की, जबकि वो फिट भी नहीं आते थे। भाई ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। शुरू में तो बांस को ही भाला बनाकर फेंका था। पिता से प्रोत्साहन मिला तो जैसे सपनों को पर लग गए। अनु कहती हैं, उनकी कामयाबी में परिवार का बड़ा योगदान है। बकौल अनु 'मुझे याद है कि जब ट्रेनिंग के खर्चों के लिए पिता ने दोस्तों से कई बार पैसे उधार लिए। मैंने यह ठान लिया था कि कुछ करके दिखाना है। सबकी मेहनत और संघर्ष बेकार नहीं जाना चाहिए।' बता दें कि अनु, 2014 इंच्योन एशियाई खेल, एशियन चैंपियनशिप 2017 भुवनेश्वर कांस्य, 2019 एशियाई चैंपियनशिप रजत पदक, 2016 दक्षेस खेल गुवाहाटी रजत पदक जीत चुकी हैं।
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