कारगिल विजय दिवस का नाम आते ही हर किसी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करते हुए पाक ने 26 जुलाई को कारगिल का लंबा युद्ध जीत लिया था। कारगिल की यादों को संजोकर रखने वाले जांबाज जवान राजेश ढ़ुल की आँखों में कारगिल के युद्ध को याद करते ही एक अनोखी और अनूठी छवि उभर आती है। राजेश जब भी इसे याद करते हैं उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
कारगिल के दौरान राजेश को अपने पिता की चिट्ठी मिली थी और उस पर लिखा था, भरा नहीं जो भाव से, बहती उसमें रसधार नहीं,इंसान नहीं वह पत्थर है, जिसे मातृ भूमि से प्यार नहीं। पिता की चिट्ठी ने राजेश को और भी जोश से ओत-प्रोत कर दिया। राजेश ढुल सैनिक परिवार से आते हैं और उनके परिवार में कुल 14 सदस्य सेना से हैं। इनमें 6 लोग सरहद पर तैनात है। ख़ास बात यह है कि उनके चाचा सूबेदार रणधीर सिंह और उन्होंने कारगिल का युद्ध साथ में लड़ा था।
भारतीय सैनिकों के बारे में राजेश कहते हैं कि हमारे जवान लाजवाब है। पड़ोसी दुश्मन पाकिस्तान हो या फिर चीन, सदा हमारे सैनिक दुश्मन के दांत खट्टे करते रहते हैं। अपने दोस्तों की शहादत पर राजेश कहते हैं कि काश हमे उनके स्थान पर शहीद होने का मौका मिलता। 20 मार्च 1996 को सेना में राजेश का चयन हुआ था और इसी दिन से शुरू हुआ उनका सफ़र। 1998 में बंगाल इंजीनियर ग्रुप सेंटर रुड़की में प्रशिक्षण के पश्चात अगले वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में वे पाकिस्तान से जा भिड़ें। 16 कोर ग्रुप में राजेश धूल शामिल रहे। अपनी जिम्मेदारियों को बताते हुए राजेश कहते हैं कि मेरे जिम्मे माइंस बिछाने का कार्य था। युद्ध के समय कई दफ़ा मैं शहीद होने से बचा। भारतीय सेना में रहते हुए राजेश ढुल ने 22 साल तक माँ भारती की सेवा की। सेना में वे हवलदार के पद पर काम किया करते थे। 2018 में वे अपनी सर्विस से सेवानिवृत्त हो गए थे। कारगिल की यादें उनके जीवन की सबसे सुनहरी यादों के रूप में जुड़ीं हुई है।
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