लड़कियों की शिक्षा के लिए लड़ीं, तालिबान की गोलियां भी खाई... फिर भी नहीं रुकी मलाला युसुफ़ज़ई

लड़कियों की शिक्षा के लिए लड़ीं, तालिबान की गोलियां भी खाई... फिर भी नहीं रुकी मलाला युसुफ़ज़ई
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परंपरागत लिबास और सिर पर दुपट्टा, देखने में मलाला युसुफ़ज़ई अपनी उम्र की अन्य लड़कियों की तरह ही लगती है, किन्तु दृढ़ निश्चय से भरी आंखें, कुछ कर गुजरने का हौसला उन्हें खास बनाते हैं। सबसे कम आयु में नोबल पुरस्कार हासिल करने वाली मलाला शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ रही है। 12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात इलाके में एक टीचर जियादुददीन युसूफजई के यहां मलाला का जन्म हुआ है। लड़कियों को स्कूल भेजने का चलन अधिक नहीं था, किन्तु छोटी सी मलाला अपने बड़े भाई का हाथ पकड़कर स्कूल जाती थी और खूब मन लगाकर पढ़ाई करती थी। 

इस बीच आतंकी संगठन तालिबान ने अफगानिस्तान से आगे बढ़ते हुए जब पाकिस्तान की तरफ कदम बढ़ाया तो स्वात के कई इलाकों पर कब्जा करने के बाद स्कूलों को तबाह करना आरंभ कर दिया। तालिबान ने 2001 से 2009 के बीच लगभग चार सौ स्कूल ढहा दिए। इनमें से 70 फीसदी स्कूल लड़कियों के थे। लड़कियों के बाहर निकलने और स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी। इसी दौरान ‘गुल मकई’ ने विश्व को तालिबान के शासन में जिंदगी की दुश्वारियां बताईं। खास रूप में लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी के बारे में बताया था।  डायरी जनवरी से मार्च 2009 के बीच दस किस्तों में BBC उर्दू की वेबसाइट पर पोस्ट हुई और पूरे विश्व में तहलका मच गया। हालांकि, कुछ समय तक यह रहस्य ही बना रहा कि गुल मकई आखिर है कौन, किन्तु दिसंबर 2009 में गुल मकई की असलियत खुलने के बाद 11 बरस की नन्ही सी मलाला तालिबान के निशाने पर आ गई थी।

09 अक्तूबर 2012 को तालिबानी आतंकी उस बस में घुस गए, जिसमें 14 वर्षीय मलाला युसूफजई परीक्षा देकर लौट रही थी। उन्होंने मलाला के सिर पर गोली मार दी। पाकिस्तान और फिर लंदन में उपचार से मलाला की जान बच गई। उन्हें 2014 में भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से नोबल पुरस्कार दिया गया। उन्होंने सबसे कम आयु में विश्व का यह सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल किया।

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