कहने को तो इंदौर को मिनी मुम्बई और मध्यप्रदेश का कॉर्पोरेट हब कहा जाता है, लेकिन फैशन की चका-चौध और राजनीती की उछल-कूद, व्यावसायिक हलचल तथा आवाम की पल-पल, कल-कल, सबका एक बहुत ही सटीक और सधा हुआ सामंजस्य देवी अहिल्याबाई की नगरी और वर्तमान में लोक सभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के गृह क्षेत्र इंदौर की पहचान है.
इंदौर नगरी में कॉर्पोरेट बिजनेस और राजनीति की बात करे तो दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू मसहूस होते है. जिस तरह शतरंज खेल के दो खिलाडी होते है उसी तरह इंदौर की राजनीती में भी शतरंज के खेल जैसा ही सामंजस्य देखने को मिलता है जंहा राजनीति के मुख्य मोहरे शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजय वर्गीय, रमेश मेंदोला और सबकी चहेती ताई सुमित्रा महाजन जी है. तो वही शतरंज के दूसरे पक्छ में कॉर्पोरेट आता है जिसमे इन दोनो में चोली दामन का साथ होने के साथ ही इस पर केंद्र सरकार का हाथ है. अब हाथ से आपको लग सकता है की काग्रेस की बात हो रही है, जी हाँ आप सही समझे केंद्र में सरकार काग्रेस की हो या बीजेपी की मध्य प्रदेश की राजनीती और व्यवसाय की बात आती है तो घूम,फिर कर सबकी नज़र इंदौर पर आ टिकती है. और टिके भी क्यों न ,क्योकि इंदौर ही एक ऐसा शहर है जो मध्य प्रदेश की चाडक्य नगरी कहा जाता है.
क्योकि यहाँ हर मोहरे बड़े सोच समझ कर इस्तेमाल किये जाते है, एक चाल भी गलत हुई तो खेल हाथ से निकल सकता है.
जी हाँ वही शतरंजी खेल जो कॉर्पोरेट और राजनीती के बीच खेला जाता है, वहीँ मध्य प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट की बात करे तो यहाँ राजनितिक और कॉर्पोरेट चाले एक साथ खेली जाती है. और आगे-आगे कॉर्पोरेट तो पीछे-पीछे राजनीतिज्ञ चलते है.
लेकिन यहाँ जो सबसे ख़ास बात देखने को मिलती वो ये की यहाँ भाजपा का बोलबाला होने के बाद भी इस पार्टी के राजनीतिग्यो में छत्तीस का आकड़ा रहता है और यहाँ का राजनीतिज्ञ किसी एक पैमाने पर राजनीती नहीं करता इसीलिए ये राजनीतिज्ञ आम आदमी की उम्मीद से परे अपनी-अपनी रोटी सेकने में लगे रहते है तथा यहाँ की आम जनता को राजनीती में कोई दिलचस्बी भी नहीं है . मतलब "अपना वोट दे दिया एक राजनीतिज्ञ पर एहसान कर दिया"शायद कुछ ऐसी सोच है यहाँ के आवाम की।