नई दिल्ली: कोरोना महामारी के बाद भारत और कॉर्पोरेट प्रमुखों ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) की संभावनाओं के वास्तविक महत्त्व को परखा है। नए आयामों ने कॉर्पोरेट जगत के समग्र सामाजिक विकास के लिए नीतिगत बदलाव करने पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है। 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी ने एक दीर्घकालिक एजेंडा तय किया था, जिसका मकसद था, भारत के 115 सबसे पिछड़े जिलों को विकास और गति की मुख्यधारा से जोड़ना। उद्योग जगत के लिए यह नया अवसर था, जब मेक इन इंडिया की पहल के साथ ग्रामीण भारत की चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकता था।
इसके अंतर्गत कंपनियां भी हितधारकों के लिए फायदेमंद स्थिति बनाने के लिए कोशिश कर रही हैं। ग्रामीण भारत भी अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए रोजगार, अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली, शिक्षा और सर्वोत्तम अवसर की इच्छा रखता है। कॉर्पोरेट संस्थाओं ने महसूस किया है कि कार्य करने की "स्वीकार्यता" के पहलु का पलड़ा काम करने के "लाइसेंस" से कहीं ज्यादा भारी है। जिसके लिए जहाँ आप कार्य कर रहे हैं, उस क्षेत्र का समावेशी और समग्र विकास होना अनिवार्य है। यदि हम आंकड़ों पर गौर करें, तो कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) कार्यक्रम के तहत कंपनियों ने 2014 से 2021 के बीच करीब 1.09 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। इस कोष में भारत की शीर्ष सौ कंपनियों ने तक़रीबन 46,654 करोड़ रुपये का योगदान दिया है। यह रकम पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण और अनुसंधान क्षेत्रों को बढ़ाने में खर्च की गई है। वर्ष 2019 -2020 में, कंपनियों ने सिर्फ ग्रामीण विकास परियोजनाओं पर करीब 2,279 करोड़ रुपये खर्च किए।
जिम्मेदार कॉर्पोरेट, पिछड़े क्षेत्रों को विकसित करने के लिए अभूतपूर्व भूमिका निभा सकते हैं। झारखंड का जमशेदपुर इसका सबूत है। प्रभावी जल निकासी प्रणाली, पेयजल की उपलब्धता, खुले स्थान और बगैर सतत बिजली के साथ इस्पात संयंत्र के पास एक शहर किस तरह विकसित हुआ। एक ऐसे उद्योग को चलाने के लिए जिसे 1,500 एकड़ से थोड़ी अधिक भूमि की जरूरत थी, जिसके लिए टाटा ने 15,000 एकड़ में फैले शहर को बसाने की व्यवस्था की। वही, जमशेदपुर आज भारत के सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आमदनी वाले शहरों में गिना जाता है।
एक अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण अमूल की ‘श्वेत क्रांति' का है जिसने हमारे देश को विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बना दिया है और गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न किए हैं। एस्सेल माइनिंग की मध्यप्रदेश में आगामी बंदर डायमंड परियोजना 28 हजार करोड़ के राजस्व और सैकड़ों रोजगार के मौकों के साथ प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के महत्वाकांक्षी जिलों के विकास और देश के हीरे के निर्यात में अहम योगदान देगी। कंपनी द्वारा सामाजिक सरोकार और उत्थान के इरादे से छतरपुर क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं के उन्नयन हेतु निरंतर अधोसंरचनात्मक सहयोग कर रही है।
विकास सभी तरह की सामाजिक बुराइयों और सामुदायिक विकास के लिए एकमात्र अहम समाधान है। इसलिए यह प्राइवेट सेक्टर की प्रमुख सामाजिक जिम्मेदारी है कि वह निवेश करे और ग्रामीण समाज के विकास में शामिल होकर दोनों के लिए लाभप्रद बनाए। काफी सारे कॉरपोरेट्स इन क्षेत्रों को ऊपर उठाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं और हमें व्यक्तिगत तौर पर भी इसके लिए योगदान देना चाहिए।
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