नई दिल्ली: दिल्ली और पंजाब में पराली जलाने के बढ़ते मामलों ने एक बार फिर आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 2024 में दिल्ली में पराली जलाने की घटनाएँ पिछले साल की तुलना में 6 गुना बढ़ गई हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के अनुसार, दिल्ली में इस साल 12 घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जबकि 2023 में यह आँकड़ा केवल 2 था। भले ही यह संख्या देखने में छोटी लगे, लेकिन दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्र के लिए यह एक गंभीर संकेत है।
पंजाब में स्थिति और भी खराब है। 27 अक्टूबर, 2024 तक, राज्य में पराली जलाने के करीब 1983 मामले सामने आए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा घटनाएँ अमृतसर से दर्ज की गई हैं। 28 अक्टूबर, 2024 को दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 300+ रहा, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक स्तर है। दिल्ली सरकार पराली जलाने के मुद्दे पर अक्सर आरोप लगाती रही है कि पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने से दिल्ली की हवा खराब हो जाती है। लेकिन अब जब पंजाब में भी AAP की सरकार है, तो सवाल उठता है कि क्या दिल्ली सरकार अपने ही राज्य और अपनी पार्टी के नियंत्रण वाले पंजाब में पराली जलाने को रोकने में नाकाम रही है?
दिल्ली सरकार ने हाल ही में दीवाली के पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इससे पहले ही राजधानी की हवा खतरनाक स्तर पर पहुँच चुकी है। इस स्थिति को लेकर दिल्ली सरकार अब उत्तर प्रदेश और हरियाणा की बसों को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहरा रही है, जबकि आंकड़े बताते हैं कि वाहनों से होने वाले प्रदूषण का हिस्सा एक तिहाई ही है और इसमें भी केवल यूपी-हरियाणा की बसें नहीं बल्कि दिल्ली की अन्य गाड़ियाँ भी शामिल हैं।
सवाल यह है कि दिल्ली और पंजाब में पराली जलाने को रोकने के लिए AAP सरकार के दावे क्यों नाकाम साबित हो रहे हैं? पहले AAP ने पंजाब को दोषी ठहराया, और अब जब पंजाब में भी उनकी सरकार है, तो उत्तर प्रदेश और हरियाणा पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है। असल मुद्दा यह है कि पराली जलाने को रोकने के लिए ठोस और कारगर कदम उठाए जाने की जरूरत है ताकि दिल्ली-एनसीआर की जनता को स्वच्छ हवा में साँस लेने का अधिकार मिल सके।
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