अपनी कविताओं के लिए आज भी याद की जाती है सुभद्रा कुमारी चौहान

अपनी कविताओं के लिए आज भी याद की जाती है सुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम आते ही दिमाग में ‘झांसी की रानी’ की याद आ जाती है, क्‍योंकि उनकी यह रचना बहुत प्रसिद्ध है। लेकिन कवियित्री सुभद्रा केवल यहीं तक सीमित नहीं थीं। 16 अगस्त को जन्मी कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी विविध रचनाओं से लोगों को अब तक बांध रखा है।  उनका निधन15 फरवरी 1948 को हुआ था। आज उनकी पुण्यतिथि है।

नौवीं पास थीं सुभद्रा: मात्र 9 वर्ष की उम्र में उन्‍होंने पहली कविता ‘नीम’ की रचना की थी। इस कविता को पत्रिका ‘मर्यादा’ में जगह दी गई। जिसके साथ ही वे पूरे स्‍कूल में मशहूर हो गईं थी। मजबूरीवश वे केवल नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई कर पाई थी। लेकिन अपनी कविताओं का शौक नहीं छोड़ा और लिखती गई। कवियित्री सुभद्रा की रचनाओं में कहीं यह झलक या अभाव नहीं खलता कि उन्‍होंने 10वीं तक भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई।

इसलिए शुरू हुआ कहानियां लिखने का दौर: 16 अगस्त 1904 में इलाहाबाद के निहालपुर में जमींदार परिवार में जन्मी् सुभद्रा को बचपन से ही कविताएं लिखने का बहुत शोक था। जिसकी वजह से वे अपने स्कूल में भी बड़ी प्रसिद्ध थीं। बाद में उन्होंने कहानियां लिखना भी शुरू कर दिया, यह उन्होंने पारिश्रमिक के लिए किया क्योंकि उस समय कविताओं की रचना के लिए पैसे नहीं मिलते थे।

जीवन साथी संग असहयोग आंदोलन में हुई थी शामिल: 4 बहनें और 2 भाइयों वाली सुभद्रा ने स्‍वतंत्रता आंदोलन में आगे आई और कई बार जेल भी जा चुकी है। मध्‍यप्रदेश के खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्‍मण सिंह से शादी के बंधन में बंधी और यहां भी उनके रुचि का ही काम देखने को मिला। पति लक्ष्‍मण सिंह पहले से ही स्‍वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे। दोनों ही महात्‍मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। सुभद्रा की कई रचनाओं में आजादी का उन्‍माद और वीर रस का सान्‍निध्‍य मिलता है।

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