नई दिल्ली : हाल ही में सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय की मानवीय आधार पर रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तीखा रुखा अपनाया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सुब्रत अपनी इच्छा से जेल में बंद है. क्योकि जब उनसे रिहाई के बारे में बात की जाती है तो एक तरफ वे यह बात कहते है कि उनके पास 1,85,000 करोड़ की परिसंपत्तियां है लेकिन जब उनसे यह कहा जाता है कि वे इसका पांचवा हिस्सा दे दे तो वे खुद को असमर्थ बताते है.
न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ का यह कहना है कि उन्हें केवल संपत्ति के पांचवे हिस्से का ही भुगतान करना है लेकिन वे फिर भी प्रॉपर्टी को ना बेचकर जेल में ही रहना पसनद कर रहे है और अपनी आज़ादी के साथ खेल रहे है. यह बात भी सामने आ रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सेबी को यह भी कहा है कि जल्द ही सहारा की संपत्ति बेचें के लिए एक रिसीवर की नियुक्ति किये जाने का प्रस्ताव भी पेश किया जाये.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल का इस मामले में यह कहना है कि इतनी बड़ी रकम का इन्तेजाम जेल में रहकर नहीं किया जा सकता है इसलिए कोर्ट को सुब्रत रॉय को मानवीय आधार पर रिहा करने के बारे में विचार करना चाहिए. सिब्बल ने साथ ही यह भी कहा है कि बड़े उद्योग घरानों को अमूमन इस तरह की किसी परेशानी को झेलना नहीं पड़ता है क्योकि उनके 1000 करोड़ रूपये तक के कर्ज को तो RBI और अन्य बैंक की तरफ से 5 से 10 साल में भुगतान की सुविधा दी जाती है.
इस बात पर पीठ ने यह कहा है कि यह संभव नहीं है क्योकि हमारी भी कुछ अड़चने है. कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए आदेशों से यह बात साफ़ हो जाएगी की सुब्रत रॉय जेल में क्यों है, तब आप इस तरह की कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.