नई दिल्ली: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने IT एक्ट की धारा 66 A को अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार के खिलाफ मानते हुए इसे रद्द कर दिया है. संविधान की धारा 19 A के तहत प्रत्येक नागरिक के पास अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है. उल्लेखनीय है कि IT एक्ट की धारा 66 A के मुताबिक, सरकार के पास यह शक्ति थी कि वह सोशल मीडिया पर लिखी गई बात को आपत्तिजनक मानते हुए उस व्यक्ति को अरेस्ट कर सकती है.
दरअसल, पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने के चलते कई लोगों को जेल भेज दिया गया था. मुंबई की दो छात्राओं को फेसबुक पर कमेंट करने के लिए जेल भेजे जाने के बाद यह मामला और गरमा गया. न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन की बेंच इस एक्ट का सरकार द्वारा गलत इस्तेमाल किए जाने पर फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि आईटी एक्ट स्पष्ट तौर पर लोगों के जानने के अधिकार का उल्लंघन करता है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह कानून बेहद अस्पष्ट है. यह भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है.
अदालत ने बेहद कड़ा फैसला लेते हुए इस कानून को असंवैधानिक बताया है. अब इस कानून के तहत किसी को जेल में नहीं डाला जा सकेगा. इस मामले में याचिकाकर्ता एक NGO, मानवाधिकार संगठन और एक कानून का छात्र श्रेया सिंघल थीं. याचिकाकर्ताओं के इस दावे को अदालत ने सही पाया कि यह कानून अभिव्यक्ति के उनके मूल अधिकार का उल्लंघन करता है.
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