नई दिल्ली: शीर्ष अदालत ने एक अहम फैसले में कहा है कि किराएदार की मौत के बाद उसके परिवार को उसी किराएदारी के तहत संपत्ति में बने रहने का अधिकार है. ये सबलेटिंग यानी उपकिराएदारी और किराएदार द्वारा उस संपत्ति को किसी तीसरे को किराए पर चढ़ा देना नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि मृतक किराएदार के परिवार वालों से सबलेटिंग की दलील पर मकान खाली नहीं करवाया जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने ये व्यवस्था देते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें HC ने एक किराएदार के परिवार को उपकिराएदार मानकर यूपी शहरी भवन (किराएदारी, किराया और खाली करने के विनियमन) एक्ट, 1972 की धारा 16(1) (बी) के तहत मकान को खाली घोषित किया था. शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की बेंच ने कहा कि इस मामले में किराया नियंत्रक के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 227 के तहत अपील नहीं सुननी चाहिए थी. इस अनुच्छेद के तहत उच्च न्यायालय को अपीलीय कोर्ट का अधिकार प्राप्त नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने देहरादून जिला जज के आदेश के विरुद्ध अनुच्छेद 227 के तहत याचिका स्वीकार करके उस पर सुनवाई की थी जो कि गलत है.
मामले में मसूरी में मकान मालिक संजय कुमार सिंघल ने अपने किराएदार के बेटे मोहम्मद इनाम से अपनी संपत्ति खाली करवाने के लिए 1999 में लोअर कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया था कि उसके किराएदार रशीद अहमद ने उसकी संपत्ति को सबलेटिंग यानी उपकिराएदरी पर उठा दिया है. किराया कानून के तहत, मकान सबलेट करने पर मकान मालिक को अपनी संपत्ति खाली करवाने का अधिकार है.
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