नया 'जमानत कानून' लाने की तैयारी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- देश में आज भी अंग्रेज़ों के कानून

नया 'जमानत कानून' लाने की तैयारी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- देश में आज भी अंग्रेज़ों के कानून
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को जमानत को लेकर नया कानून (Bail Act) बनाने पर विचार करने को कहा है। ताकि जमानत के अनुदान को असरदार बनाया जा सके। शीर्ष अदालत ने कहा है कि अभी भी भारत में आजादी से पहले की दण्ड प्रक्रिया संहिता (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर) संशोधन के साथ करीब-करीब उसी रूप में मौजूद है। 

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा है कि, स्वतंत्रता कानून में निहित है, इसे संरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए। देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ सी आ गई है। अदालत ने कहा कि, हमारे सामने जो आंकड़े हैं, उनके अनुसार, जेलों के दो तिहाई से ज्यादा कैदी विचाराधीन कैदी हैं। जबकि संज्ञेय अपराध के अलावा इनमें से अधिकतर कैदियों को अरेस्ट करने की भी जरूरत नहीं हो सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने नए जमानत कानून (Bail Act) की अनुशंसा ऐसे वक़्त पर की है, जब कार्यकर्ताओं, सियासी नेताओं और पत्रकारों सहित कई विचाराधीन कैदियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। 

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि, 'लोकतंत्र में कभी भी पुलिस राज नहीं हो सकता। भारत में आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि की दर काफी कम है। ऐसे में यह कारक नकारात्मक अर्थों में जमानत आवेदनों का फैसला करते वक़्त अदालत के विवेक पर असर डालता है। अदालत यह सोचती है कि दोषसिद्धि की संभावना नजदीक है। ऐसे में जमानत अर्जियों पर कानूनी सिद्धांतों के विपरीत सख्ती से फैसला लेना होगा। हम एक जमानत अर्जी पर विचार नहीं कर सकते हैं। जो कि ट्रायल के जरिए संभावित फैसले के साथ प्रकृति में दंडात्मक नहीं है। इसके विपरीत, निरंतर हिरासत के बाद आखिरी में बरी करना घोर नाइंसाफी का मामला होगा।'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के साथ आपराधिक अदालतें विशेष तौर पर स्वतंत्रता के अभिभावक हैं। ऐसे में आपराधिक कोर्ट द्वारा कोई भी जानबूझकर की गई गलती, स्वतंत्रता का तिरस्कार होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि, अरपाधिक अदालत का यह कर्तव्य है कि वह संवैधानिक मूल्यों और लोकाचार की रक्षा करे और एक सतत दृष्टि बनाए रखे। यही नहीं अदालत ने जांच एजेंसियों को भी सलाह दी है। अदालत ने कहा है कि संदिग्ध व्यक्ति के कैद में रहते समय जांच एजेंसी को भी जांच प्रक्रिया में तेजी लानी होगी। ऐसे में एजेंसी को निर्धारित वक़्त में जांच पूरी करने का काम सौंपा गया है। एक नाकामी आरोपी को रिहा करने में सक्षम होगी। 

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