नई दिल्ली: प्रदेश के लिहाज से अल्पसंख्यक की परिभाषा और उनकी पहचान के लिए दिशा निर्देश निर्धारित करने की मांग वाली याचिका पर सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से कहा है कि वे याचिकाकर्ता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता अश्विनि उपाध्याय की इस मांग पर तीन महीने के अंदर निर्णय लें. याचिका में दावा किया गया है कि कई प्रदेशों में हिंदू धर्म के लोग आबादी के अनुपात में अल्पसंख्यक है. किन्तु सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यक का फायदा वहां उनसे कहीं अधिक तादाद में मौजूद मुस्लिम उठा रहे हैं.
सोना के भावों में तेजी के साथ चांदी में दिखी जोरदार गिरावट
इस याचिका में जिन राज्यों का हवाला दिया गया है, उनमें लक्षद्वीप (मुस्लिम आबादी 96.20 प्रतिशत), जम्मू कश्मीर (मुस्लिम आबादी 68.30 प्रतिशत) ,असम (मुस्लिम आबादी 34.20 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (मुस्लिम आबादी 27.5 प्रतिशत), केरल (26.60 प्रतिशत), यूपी (19.30 प्रतिशत) और बिहार (18 प्रतिशत) का नाम शामिल है. याचिकाकर्ता का कहना है कि इन सभी प्रदेशों में मुस्लिम हकीकत में बहुसंख्यक होने के बाद भी सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों के दर्जे का फायदा उठा रहे हैं जबकि जो हकीकत में जो समुदाय अल्पसंख्यक हैं उन्हें इसका फायदा नहीं मिल रहा है.
डॉलर के मुकाबले बढ़त के साथ खुला रुपया
गौरतलब है कि, याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत में कहा था कि 23 अक्टूबर 1993 में अधिसूचना जारी कर मुस्लिम सहित अन्य समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया गया था. उपाध्याय ने 2011 के जनसँख्या के आंकड़ों का हवाले देते हुए कहा था कि लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, किन्तु उन्हें इन राज्यों में यह दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया है. उन्होंने मांग की थी कि इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यकों को मिलने वाले तमाम अधिकार प्रदान किए जाएं.
खबरें और भी:-
सप्ताह की शुरुआत में गिरावट के साथ खुले बाजार
कई दिनों बाद आज पेट्रोल-डीजल के दामों में दिखाई दी बढ़त
विश्वविख्यात अर्थशास्त्री सोरमन का दावा, अब तक की सभी सरकारों से बेहतर है मोदी की आर्थिक नीति