नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने 1998 में एक विधवा महिला का बलात्कार करने के बाद हत्या करने के मामले में दोषी पाए गए शख्स को जीवनदान दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की सजा को मौत से बदलकर उम्रकैद में बदलने का आदेश दिया है। शुक्रवार (4 नवंबर) को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि वह करीब 10 तक जेल में एकांत कारावास में था, जिसका उसके स्वास्थ्य में बुरा प्रभाव पड़ा है।
शीर्ष अदालत ने बीए उमेश द्वारा दाखिल की गई उस याचिका पर सुनवाई की, जो 1998 में बेंगलुरु में एक विधवा के दुष्कर्म और हत्या में शामिल था। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि, 'मौजूदा मामले में, ट्रायल कोर्ट द्वारा 2006 में अपीलकर्ता को फांसी की सजा सुनाई गई थी और दया याचिका को अंततः 12 मई 2013 को राष्ट्रपति द्वारा निपटाया गया था। जिसका अर्थ है कि एकान्त कारावास और अलगाव में अपीलकर्ता की कैद 2006 से 2013 तक कानून की स्वीकृति के बगैर थी, जो कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के पूरी तरह से खिलाफ है।'
प्रधान न्यायाधीश (CJI) यू यू ललित के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि, 'मौजूदा मामले में, एकान्त कारावास की अवधि करीब 10 वर्ष है। ऐसे में यदि अपीलकर्ता को दी गई मौत की सजा को कम किया जाता है, तो इंसाफ का लक्ष्य पूरा होगा।' कोर्ट ने कहा कि, 'एकान्त कारावास ने अपीलकर्ता के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला है। हमारे विचार में, अपीलकर्ता, फांसी की सजा से कम आजीवन कारावास पाने का करने का हकदार है। कम से कम 30 वर्ष की सजा भुगतनी होगी और अगर उसकी तरफ से छूट के लिए कोई आवेदन पेश किया जाता है, तो उसके बाद ही उसके गुण-दोष पर विचार किया जाएगा।'
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