सुप्रीम कोर्ट के जज बोबड़े ने जल्द न्याय के लिए दिया यह सुझाव

सुप्रीम कोर्ट के जज बोबड़े ने जल्द न्याय के लिए दिया यह सुझाव
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नई दिल्लीः देश की अदालतें मुकदमों की भारी संख्या के बोझ के तले दबी हुई है। अदालतों का ढ़ांचा इतना विकसित नहीं है कि वह जल्द इन केसों की सुनवाई कर सके। आबादी बढ़ने के साथ केस-मुकदमे भी बढ़ रहे हैं। मगर इस अनुपात में अदालतों के संसाधन नहीं बढ़ रहे । यह है कि आम समस्या है कि अदालतों में मुकदमें बेहिसाब लंबे चलते हैं। इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश शरद बोबड़े ने जल्द न्याय के लिए एक सुझाव रखा है। उनके मुताबिक, मुकदमे से पहले मध्यस्थता पर पहल करना चाहिए।

इस तरीके को कानूनी सहायता प्रणाली की तरह उपयोग किया जाना चाहिए ताकि लोगों को त्वरित न्याय मिल सके। न्यायाधीश बोबड़े ने बताया कि अप्रैल 2017 से मार्च 2018 के बीच मध्यस्थता के माध्यम से 1,07,587 मामलों का निपटारा किया गया है। उन्होंने बताया कि अकेले गुजरात में ही महज एक दिन में 24 हजार मामालों का निपटारा हुआ है। जस्टिस बोबड़े ने बताया, मध्यस्थता पर जोर दिया जा रहा है। इसलिए हम पूर्व मुकदमेबाजी मध्यस्थता' को अनिवार्य करने के बारे में सोच रहे हैं, जिसे केवल वाणिज्यिक विवादों तक सीमित रखने की आवश्यकता नहीं है। देश में कानून की पढ़ाई कराने वाले विश्वविद्यालयों में मध्यस्थता में डिग्री, डिप्लोमा पाठ्यक्रम होना चाहिए।

उन्होंने बताया कि समाज के वंचित वर्गों को प्रदान की गई कानूनी सहायता से उन्हें अपनी आवाज सुनने में सहायता मिली है। समाज के वंचित वर्गों में से कई को तो यह भी पता नहीं है कि उनके पास कानून और कल्याणकारी योजनाओं के तहत कानूनी अधिकार हैं। देश में 80 प्रतिशत लोग कानूनी मदद के हकदार हैं, मगर यह 0.05 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या को प्रदान नहीं किया जाता है।

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