नई दिल्ली: बीते कई दिनों से लगातार बढ़ रही जुर्म और घटनाओं की कहानी ने अब एक विकराल रूप ले लिया है. और हर तरफ केवल CAA के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शन के दौरान लखनऊ में हिंसा और उपद्रव करने वालों की सुप्रीम कोर्ट ने जमकर खबर ली है. जंहा सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों के किनारे उपद्रवियों के पोस्टर फौरन हटाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार भी कर दिया.
मिली जानकारी के अनुसार जस्टिस UU ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने साफ तौर पर कहा, बेशक दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें दंडित भी किया जाना चाहिए. मगर, ऐसा कोई कानून नहीं है, जो सड़क के किनारे उपद्रवियों के पोस्टर लगाने को सही ठहरा सके. जंहा इस बात का पता चला है कि अवकाशकालीन पीठ ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को इस मामले को तत्काल मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के सामने रखने को कहा, ताकि कम से कम तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जा सके, जो अगले हफ्ते इस मामले को सुन सके.
वहीं यह भी कहा जा रहा है कि यूपी सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस विवाद को गंभीर मानते हुए कहा कि इस मसले पर बड़ी पीठ द्वारा परीक्षण करने की दरकार है. मामले में अपेक्षाकृत विस्तृत व्याख्या और विचार की जरूरत भी बताई. यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है. जंहा इस पर पीठ ने मेहता से पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास पोस्टर लगाने की ऐसी कोई शक्ति है? जंहा इस बात का पता चला है कि जस्टिस ललित की पीठ ने कहा, हिंसा और तोड़फोड़ की निंदा हो, मगर क्या अपराधियों को बार-बार पीड़ित किया जाना चाहिए? आरोपियों के लिए भुगतान करने का समय अभी भी बाकी था और वसूली की कार्रवाई को चुनौती देने वाली उनकी याचिकाएं लंबित हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने जिन लोगों की तस्वीरें बैनरों पर हैं, उन्हें मामले में पक्षकार बनने की मंजूरी भी दे दी.
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