नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक अहम निर्णय देते हुए कहा कि सरकारी सहायता प्राप्त ईसाई मिशनरी स्कूलों में काम करने वाले पादरियों और ननों के वेतन पर आयकर लागू होगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि आयकर विभाग को इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए और टीडीएस (स्रोत पर कर) काटा जाएगा।
यह मामला तमिलनाडु और केरल के 100 से अधिक ईसाई डाइअसेस की याचिकाओं से जुड़ा था, जिन्हें न्यायालय ने खारिज कर दिया। इन संस्थाओं ने यह तर्क दिया था कि पादरियों और ननों का वेतन मण्डली के पास जाता है, न कि उनके व्यक्तिगत खाते में, इसलिए उन पर कर नहीं लगाया जाना चाहिए। लेकिन न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए कहा कि वेतन आय के रूप में माना जाएगा, और इसलिए उस पर आयकर लगेगा। 1944 में मिशनरी स्कूलों को कर से छूट दी गई थी, लेकिन 2014 में केंद्र सरकार ने टीडीएस लागू किया था। इससे पहले, इन मिशनरी स्कूलों में काम करने वाले पादरी और ननों के वेतन पर कोई कर नहीं लगता था, जो सरकारी धन से आता था।
न्यायालय के इस फैसले ने एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया है कि क्या ऐसे संस्थानों के कर्मचारियों के वेतन पर आयकर नहीं लगना चाहिए, जिन्हें सरकारी सहायता मिलती है। यह मामला देश में धर्मनिरपेक्षता और विशेषाधिकार के मुद्दे पर एक बड़ी बहस को जन्म दे रहा है।
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