नई दिल्ली: दिल्ली दंगे के 3 आरोपियों को उच्च न्यायालय से मिली ज़मानत को निरस्त करने से शीर्ष अदालत ने मना कर दिया है. किन्तु स्पष्ट किया है कि उच्च न्यायालय के इस आदेश के आधार पर पूरे देश में कहीं भी UAPA के मामलों में राहत नहीं मांगी जा सकेगी. जजों ने इस बात पर हैरानी जताई कि उच्च न्यायालय ने जमानत के मामले में 125 पन्ने का आदेश दिया. किसी ने UAPA की वैधता को चुनौती नहीं दी थी. फिर भी उच्च न्यायालय ने कानून की व्याख्या की. उसकी संवैधानिकता पर सवाल खड़े कर दिए.
सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले के व्यापक बिंदुओं पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता बताई है. न्यायाधीशों ने दिल्ली पुलिस की याचिका पर तीनों आरोपियों नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ तन्हा को नोटिस भेजा है. जवाब के लिए 4 सप्ताह का समय देते हुए अदालत ने कहा कि 19 जुलाई से शुरू हो रहे सप्ताह में मामले को सुनवाई के लिए लगाया जाएगा.
15 जून को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल और अनूप भंबानी की बेंच ने नताशा, देवांगना और आसिफ को जमानत दी थी. जजों ने कहा था कि पुलिस की ओर से दर्ज FIR सरकार के खिलाफ असहमति की आवाज़ को दबाने का प्रयास है. तीनों ने देश की सुरक्षा को खतरा नहीं पहुंचाया. उनके खिलाफ UAPA लगाना गलत है.
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