नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने रामनवमी पर देश भर में श्रद्धालुओं के खिलाफ हुई हिंसा के मामलों की जाँच का आदेश देने से मना कर दिया है। ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ नामक एक ट्रस्ट ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (17 अप्रैल) को ठुकरा दिया। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने इस याचिका में कहा था कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पूरे देश में हिंसक वारदातों को अंजाम दिया और हिन्दू श्रद्धालु इसका शिकार बने।
याचिका में बताया गया था कि प्रति वर्ष रामनवमी के दौरान इस प्रकार की हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि वो पश्चिम बंगाल, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, झारखंड और तेलंगाना में स्थित उच्च न्यायालयों में याचिका दाखिल करें। बता दें कि महाराष्ट्र में भी इस प्रकार की घटनाएँ सामने आई हैं। पश्चिम बंगाल में इसका सर्वाधिक असर दिखाई दिया। वहाँ की सीएम ममता बनर्जी के एकतरफा बयानों से भी कट्टर इस्लामी गुंडों को ताकत मिला।
इस याचिका में हिन्दू संस्था ने सुप्रीम कोर्ट से माँग की थी कि हिन्दुओं की शोभा यात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। रामनवमी के साथ ही सभी त्योहारों पर सुरक्षा की माँग की गई। साथ ही कहा गया कि जो मुस्लिम, हिन्दू पर्व-त्योहारों को पसंद नहीं करते हैं, वो इस पर हमला करते हैं। कोर्ट को बताया गया था कि एक साजिश के तहत इस प्रकार के हमले किए जाते हैं। याचिका में माँग की गई थी कि जिन-जिन राज्यों में ऐसी हिंसा हुई है, वहाँ के मुख्य सचिवों से रिपोर्ट मांगी जाए।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट से राज्य सरकारों को ये आदेश जारी करने का निवेदन भी किया गया था कि हिंसा की इन वारदातों में जिन पीड़ितों को नुकसान पहुँचा, उसकी भरपाई की जाए। इसके साथ ही याचिका में पश्चिम बंगाल के हावड़ा, बिहार के नालंदा, तेलंगाना के हैदराबाद, महाराष्ट्र के औरंगाबाद, गुजरात के वरोदड़ा और झारखंड के जमशेदपुर में इस साल हुई ऐसी हिंसा का उल्लेख किया गया। सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि, किसी इलाके को मुस्लिम बहुल कह कर शोभा यात्रा न निकालने के लिए कहा जाता है – इसे रोकने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश देने की माँग भी याचिका में की गई थी। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ठुकरा दी।
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