नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय में एमएल शर्मा नामक एक व्यक्ति ने याचिका दायर कर सिंधु जल समझौते को रद्द करने की मांग की थी। मगर इसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। दरअसल याचिका में यह कहा गया था कि यह दो देशों में बीच होने वाली संधि नहीं है और न ही इस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हैं। यह तो दोनों देशों के नेताओं के बीच निजी सहमति है। इस कारण इसे रद्द किया जाना जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के जल विवाद को लेकर की जाने वाली संधि है। इस संधि से भारत के जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब आदि क्षेत्र प्रभावित होते हैं दूसरी ओर पाकिस्तान के गिलगिट बाल्टिस्तान, खैबर पख्तुनख्वा, पाकिस्तान के क्षेत्र वाले क्षेत्रों में सिंधु नदी प्रवाहित होती है। दोनों देशों में इस नदी के और इसकी सहायक नदियों से जल के बंटवारे को लेकर विवाद है।
वर्ष 1960 में दोनों ही देशों के बीच समझौता हुआ था जिसके तहत चिनाब व झेलम नदी का पानी पाकिस्तान को वितरित किए जाने पर सहमति हुई थी जबकि भारत को रावी, व्यास व सतलज नदियों पर पूरा अधिकार दिया गया था। दरअसल भारत द्वारा कहा गया था कि पाकिस्तान को भारत की ओर आतंकवाद को प्रेरित करना बंद करना होगा। तभी इस जल समझौते को बरकरार रखा जा सकता है। इसके अभाव में भारत ने यह समझौता तोड़ने की धमकी दी थी। जिसके बाद पाकिस्तान ने वर्ल्ड बैंक में अपनी मांग रखी थी।
आतंकवादी घटनाऐं बढ़ने के साथ ही भारत इस समझौते को लेकर पाकिस्तान को चेताता रहा और पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समझौते को लेकर मांग करता रहा कि यह समझौता तोड़ा न जाए। पाकिस्तान का मानना था कि भारत यदि उसके हिस्से का पानी रोकता है तो उसे परेशानी होगी। उसने भारत के उरी और चुटक हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को लेकर कहा था कि इन प्रोजेक्ट्स से पाकिस्तान के हिस्से का पानी कम हो जाएगा। ऐसे में इन प्रोजेक्टस को अंजाम नहीं देना चाहिए। बाद में पाकिस्तान ने अपनी आपत्ती को रद्द कर दिया था।
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