नई दिल्ली: शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को दिए आरक्षण को असंवैधानिक बताया है। यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि, 50 फीसदी आरक्षण सीमी निर्धारित करने वाले फैसले पर फिर से विचार की आवश्यकता नही है। मराठा आरक्षण इस 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ दिन में 10:30 बजे यह फैसला दिया है। संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को आरंभ की थी और 26 मार्च को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दाखिल किए गए उन हलफनामों पर भी गौर किया गया था कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी फैसले (इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है) पर बड़ी बेंच की ओर से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
अदालत ने इस बात पर भी सुनवाई की थी कि क्या राज्य अपनी ओर से किसी वर्ग को पिछड़ा घोषित करते हुए रिजर्वेशन दे सकते हैं या संविधान के 102वें संशोधन के बाद यह अधिकार केंद्र को है? सुनवाई के दौरान संवैधानिक पीठ ने सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था। कई राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिया जा रहा है। दरअसल, शीर्ष अदालत इसके पीछे राज्य सरकारों का तर्क जानना चाह रही थी।
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