नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर परिसीमन (Delimitation) को चुनौती देने वाली याचिका पर आज यानि गुरुवार (1 दिसंबर) को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायमूर्ति एसके कॉल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की बेंच ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा था। केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग ने कोर्ट में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के फैसले का बचाव किया। मगर, इस फैसले को अदालत में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का कहना है कि परिसीमन की प्रक्रिया का उचित तरीके से पालन नहीं किया गया। देश के बाकी हिस्सों में लागू नियमों का पालन करने की जगह जम्मू-कश्मीर को अलग-थलग कर दिया गया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि याचिकाकर्ता ने कानूनों के प्रावधानों को चुनौती नहीं दी है। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान को देखें। याचिकाकर्ता ने इस मामले में संवैधानिक स्तर पर चुनौती नहीं दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले भी संवैधानिक रूप से निर्धारित विधायकों की तादाद को पुनर्गठन अधिनियमों के तहत पुनर्गठित किया गया था। सॉलिसिटर जनरल ने परिसीमन को चैलेंज करने वाली याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कश्मीर में 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है। जम्मू-कश्मीर में 2019 से पहले परिसीमन अधिनियम लागू नहीं था।
दरअसल, याचिका में सवाल उठाया गया था कि इसे सिर्फ जम्मू-कश्मीर पर ही लागू क्यों किया गया और उत्तर-पूर्वी राज्यों को क्यों छोड़ दिया गया? मेहता ने इसका जवाब देते हुए कहा कि 2019 में उत्तर-पूर्वी इलाकों में भी परिसीमन लागू हो चुका है। मगर उस समेत उत्तर-पूर्वी राज्यों मे आंतरिक अशांति के कारण परिसीमन नहीं हो सका।
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