नई दिल्ली: भारत की शीर्ष अदालत ने आईपीसी की धारा 377 के खिलाफ दायर की गई तमाम याचिकाओं पर सुनवाई कर ली है. सुनवाई ख़त्म होने के बाद सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है. इससे पहले कोर्ट ने इस पर सख्त रुख करते हुए कहा था कि इस धारा को समाप्त कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से समलैंगिकता के साथ सामाजिक 'कलंक' जुड़ गया है और यह समाज में समलैंगिकों के प्रति भेदभाव का एक बड़ा कारण है.
आपको बता दें कि धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध घोषित करती है, 158 साल पुरानी इस धारा को समाप्त करने के लिए दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की. इससे पहले 12 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा था कि इसी धारा की वजह से LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर्स, क्वीर) कम्युनिटी के लोगों को समाज में गहरे भेदभाव का सामना करना पड़ा है.
उन्होंने कहा था कि अगर इस धारा को समाप्त कर दिया जाए, तो अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध अपराध नहीं रहेंगे और इसके साथ जुड़ा कलंक भी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा. मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि ये भी हमारे समाज का ही एक तबका हैं और इन्हे भी जीने के उसी तरह अधिकार हैं, जैसे कि अन्य लोगों के हैं.
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