नई दिल्ली: शीर्ष अदालत ने एक अहम फैसले में कहा है कि आरोपी की सहूलियत के आधार पर आपराधिक मुकदमों को एक राज्य से दूसरे राज्य के अदालत में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। एक अदालत से दूसरे अदालत में मुकदमे अगर दूरी तय करने के आधार पर स्थानांतरित करते रहे तो CPRC में तय किए गए मुकदमे चलाने के अदालत के क्षेत्राधिकार के प्रावधान बेमतलब हो जाएंगे। जहां तक कानून के निर्देशों का सवाल है तो वहां सुविधा और असुविधा के कोई मायने नहीं है।
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की एकल बेंच ने यह फैसला एक केस को तमिलनाडु के सेलम से दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में शिफ्ट करने की सीआरपीसी की धारा 406 के तहत दाखिल आरोपित की स्थानांतरण याचिका को खारिज करते हुए दिया। धारा 406 के तहत शीर्ष अदालत को एक ही राज्य से दूसरे राज्य में मुकदमे शिफ्ट करने का मूल अधिकार है। जबकि राज्य के भीतर ही मुकदमे एक सेशन कोर्ट से दूसरे सेशन कोर्ट में भेजने का अधिकार संबंधित उच्च न्यायालय को होता है।
अदालत ने कहा कि जब केस दर्ज होता है तो या तो आरोपित को या शिकायतकर्ता को पूरे राज्य में यात्रा करके मुक़दमे की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए क्षेत्रीय अधिकार वाली अदालत में जाना पड़ता है। यहां तक कि भाषा की समस्या के आधार पर केस स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। इस मामले में आरोपित ने कहा था कि उसे तमिल समझ नहीं आती, इसलिए उसका केस दिल्ली भेजा जाए। धारा 406 के तहत मुकदमा तभी ट्रांसफर किया जाता है, जब न्याय सुनिश्चित करना हो और यह न्याय उस राज्य में सुनिश्चित करना संभव नहीं हो पा रहा हो।
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