नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने मानसिक रूप से अस्वस्थ और दिव्यांग बच्ची के दुष्कर्म और उसकी हत्या के दोषी को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा है। साढ़े सात साल की बच्ची से संबंधित मामले पर कोर्ट ने कहा है कि यह अपराध अत्यंत निंदनीय है और अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है। जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी टी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने मृत्युदंड दिए जाने के राजस्थान हाई कोर्ट के 29 मई, 2015 के आदेश को यथावत रखा है।
अदालत ने कहा कि, 'खासकर, जब पीड़िता (मानसिक रूप से अस्वस्थ और दिव्यांग साढ़े सात साल की बच्ची) को देखा जाए, जिस प्रकार से पीड़िता का सिर कुचल डाला गया, जिसके चलते उसके सिर की आगे की हड्डी टूट गई और उसे कई चोटें आईं, उसे देखते हुए यह अपराध अत्यंत निंदनीय और अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है।' सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, 'मौजूदा मामले में अपराध और अपराधी के आसपास के सभी तथ्य इसे भीषण बनाते हैं। हम स्पष्ट रूप से इस विचार से सहमत हैं कि मौत की सजा को कम करने की कोई वजह नहीं बनती है। यहां तक कि बगैर किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा देने का विकल्प भी अपीलकर्ता के अपराधों की प्रकृति और उसके आचरण को देखते हुए उचित नहीं लगता है।'
बता दें कि, इससे पहले हाई कोर्ट ने कहा था कि यह केस अत्यंत दुर्लभ मामलों की श्रेणी में आता है और उसने सेशन कोर्ट द्वारा इस मामले में पारित आदेश को यथावत रखा था। हाई कोर्ट ने कहा था कि सत्र अदालत के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है। अपराधी ने 17 जनवरी, 2013 को बच्ची का किडनैप किया था, उसका रेप किया था और उसकी हत्या कर दी थी।
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