नई दिल्ली: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते जान गंवाने वालों के परिवार को मुआवजा दिए जाने की मांग को लेकर सोमवार को शीर्ष अदालत ने सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने कहा कि स्पष्ट है कि 2015 अधिसूचना यहां लागू नहीं है, तो इस बात पर जोर नहीं दिया जा सकता कि 4 लाख रुपए प्रदान किए जाएं, क्योंकि महामारी का मानदंड अधिक है तो यह एक बड़ी आर्थिक देनदारी होगी.
इससे पहले केंद्र सरकार ने भी सर्वोच्च न्यायालय में इसे लेकर हलफनामा दायर कर दिया था. इसमें कहा था कि कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के परिवार वालों को 4-4 लाख रूपए का मुआवजा नहीं दिया सकता. केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि आपदा कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा केवल प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है. सरकार का तर्क है कि यदि एक बीमारी से होने वाली मौत पर मुआवजा दिया जाए और दूसरी पर नहीं, तो यह गलत होगा.
वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जब राज्य सरकारें मुआवजे का ऐलान कर सकती हैं तो केंद्र सरकार की तरफ से कोरोना से होने वाली मौत के मामले में मुआवजा क्यों नहीं मुहैया कराया जा सकता है. याचिकाकर्ता गौरव बंसल ने कहा कि केंद्र सरकार यह नहीं कह सकती है वह मुआवजा नहीं देगी. वित्त आयोग को भी जानकारी है कि लोगों को पैसे की जरुरत है. यदि पिछड़े क्षेत्रों में व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसका परिवार आर्थिक समस्या में पड़ जाता है.