नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि महाराष्ट्र की 30 फीसदी जनसंख्या मराठा है और इसकी तुलना समाज के सीमांत तबके के साथ नहीं की जा सकती है. अदालत ने मराठा समुदाय के लिये सूबे में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने संबंधी अधिनियम के अमल पर रोक लगाते हुए यह टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में उसका मत है कि महाराष्ट्र सरकार ने यह नहीं बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1992 में मंडल प्रकरण में निर्धारित आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद की सीमा से बाहर मराठों को आरक्षण देने के लिए कोई असाधारण स्थिति थी.
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवीन्द्र भट की बेंच ने कहा कि सार्वजनिक सेवाओं और सरकारी पदों पर नियुक्तियां और शैक्षणिक सत्र 2020-21 के दौरान शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश, मराठा समुदाय के लिये आरक्षण देने वाले कानून पर अमल किए बिना ही किए जायेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन अपील के विचाराधीन होने के दौरान प्रदेश के 2018 के इस कानून पर अमल से सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को अपूर्णीय क्षति हो जायेगी.
महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 2018 में शिक्षा और रोजगार में आरक्षण कानून बनाया था. बंबई उच्च न्यायालय ने गत वर्ष जून में इस कानून को वैध ठहराते हुये कहा था कि 16 फीसद आरक्षण न्यायोचित नहीं है और इसकी जगह रोजगार में 12 और प्रवेश के मामलों में 13 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं होना चाहिए.
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