नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि दवा निर्माण करने वाली फार्मा कंपनियों की तरफ से डॉक्टरों को दिए जाने वाले तोहफे मुफ्त नहीं होते हैं। इनका असर दवा की कीमत में वृद्धि के रूप में सामने आता है, जिससे एक खतरनाक सार्वजनिक कुचक्र बन जाता है। ये टिप्पणियां करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फार्मा कंपनियों के मुफ्त उपहार देने के खर्च को आयकर छूट में जोड़ने संबंधी अनुरोध को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल प्रैक्टिश्नर को तोहफे देना कानूनन मना है। फार्मा कंपनियां इस पर आयकर कानून की धारा 37 (1) के तहत आयकर छूट का फायदा नहीं ले सकतीं। इस धारा के तहत ऐसा कोई भी खर्च, जिसे कारोबार को बढ़ाने के लिए किया गया है, उस पर आयकर छूट मिलती है। इस मामले पर फैसले में न्यायमूर्ति यूयू ललित की बेंच ने कहा कि डॉक्टर का मरीज के साथ एक ऐसा रिश्ता होता है, जिनका लिखा एक भी शब्द मरीज के लिए आखिरी होता है। डॉक्टर की लिखी दवा चाहे महंगी और मरीज की पहुंच से बाहर हो तो भी वह उसे खरीदने के लिए पूरा प्रयास करता है। ऐसे में यह बेहद चिंता का मामला बनता है, जब यह पता लगता है कि डॉक्टर द्वारा लिखे परामर्श का संबंध फार्मा कंपनियों के मुफ्त उपहार से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्रीबी (कांफ्रेंस फीस, सोने का सिक्का, लैपटाप, फ्रिज, LCD टीवी और यात्रा खर्च आदि) की आपूर्ति फ्री नहीं होती है, इन्हें दवाओं की कीमतों में जोडा जाता है। इससे दवा के भाव बढ़ते हैं। फ्रीबी देना सार्वजनिक नीति के बिल्कुल विरुद्ध है, इसे स्पष्ट रूप से कानून द्वारा रोका गया है।
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