नई दिल्ली: दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 30 जुलाई, सोमवार को सुनवाई करेगा. इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में 3 जजों की पीठ द्वारा की जाएगी. इससे पहले हुई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि धर्म के नाम पर महिला के यौन अंगों को काटना अमानवीय है, यह महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है.
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यह याचिका सुनीता तिवारी द्वारा दाखिल की गई है, जो खुद पेशे से वकील है. उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि महिला खतना की प्रथा बेहद असंवेदनशील और दर्दनाक है, सरकार को इस पर कड़ा कानून बनाना चाहिए और जब तक कानून नहीं बन जाता, तब तक इसके लिए गाइडलाइन जारी की जानी चाहिए. उन्होंने याचिका में कहा है कि ये प्रथा कानून की नज़र में भी गलत है, क्योंकि ये संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है.
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सुनीता तिवारी की इस याचिका को केंद्र सरकार का भी समर्थन मिला था, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि "धर्म के नाम पर लड़कियों की खतना करना जुर्म है और हम इसे प्रतिबंधित करने का समर्थन करते हैं". आपको बता दें कि ये प्रथा भारत के दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित है, जिसमे महिलाओं की यौन इच्छा को ख़त्म करने के लिए उनके भगशिश्न को काट दिया जाता है, यह प्रक्रिया बेहद दर्दनाक होती है. वहीं इसके पक्षधरों का कहना है कि यह महिलाओं को व्यभिचार से रोकने के लिए किया जाता है.
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