नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने आयकर तलाशी पर गुरुवार (6 अप्रैल) को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए आरोपी के अलावा रिश्तेदारों और दोस्तों की तलाशी करने के आयकर प्रावधान/संशोधन को सही ठहराया है। बता दें कि, धारा 153 सी का प्रावधान वित्त कानून, 2015 के माध्यम से आयकर कानून, 1961 में जोड़ा गया था, जिसे 1 जून 2016 से लागू होना था। अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कानून पिछली तारीख से लागू होगा।
बता दें कि, आयकर कानून की धारा 153 सी कहती है कि राजस्व विभाग आरोपी व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य लोगों की भी तलाशी ले सकता है अगर सर्च में उनसे जुड़े आपराधिक सामग्री मिलती है, तो विभाग उनकी भी सर्चिंग कर सकता है। इस धारा में शुरू में ‘संबध और संबध रखता’ शब्द इस्तेमाल किए गए थे। यानी अगर तलाशी के दौरान कोई बुक ऑफ अकाउंट या दस्तावेज जो आरोपी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से ताल्लुक रखते हैं, तो उसकी तलाशी भी की जा सकती है।
हालांकि, 2014 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे प्रावधान को रद्द कर दिया था। इसके बाद वित्त कानून, 2015 में इसे संशोधित किया गया और संबंध रखता है शब्द को ‘जुड़ा हुआ है या जुड़ता है’ से बदल दिया। इस संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने संशोधन को सही ठहराते हुए कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस शब्द के अर्थ को बहुत सीमित कर दिया था कि जिससे टैक्स चोरी करने वाले लोग बच सकते थे, जबकि विधायिका का इरादा ऐसा नहीं था। इसलिए उसने धारा 153सी को संशोधित किया और टैक्स चोरी से जुड़े लोगों को भी साथ में लिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि आयकर कानून की धारा 132 के तहत जारी सर्च 1 जून 2015 से पूर्व के मामलों में भी जारी रहेंगी। इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ 115 अपीलें दाखिल की गई थीं। इस सभी अपीलों को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया।
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