कल रविवार (28 मई) को 140 करोड़ हिंदुस्तानी एक अद्भुत क्षण का साक्षी बनने जा रहे हैं। लगभग 93 वर्षों के बाद प्रधानमंत्री मोदी पूरे वैदिक रीती-रिवाज़ और मंत्रोच्चार के साथ लोकतंत्र के नए मंदिर को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। इस नए संसद भवन में भारतीय संस्कृति और न्याय के प्रतिक राजदंड यानी सेंगोल (Sengol) को भी स्थापित किया जाएगा, सत्ता हस्तांतरण का यह प्रतीक चोल राजवंश के काल से संबंधित है। चोल राजवंश भारत का सबसे प्राचीन और सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश था, जो आज के बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, कंबोडिया, वियतनाम तक फैला हुआ था। भारतीय परंपरा का यह गौरवशाली प्रतीक 'सेंगोल' आज़ादी के 75 वर्षों के बाद पहली बार संसद में रखा जाएगा।
इस संसद भवन में हमें भारतीय संस्कृति और गौरवशाली अतीत की कई निशानियां देखने को मिलेंगी। इस इमारत में देश के विभिन्न हिस्सों की प्रतिमाएं और आर्ट वर्क बनाए गए हैं। इसके साथ ही इसमें देश में पूजे जाने वाले पशु-पक्षियों की झलकियां भी दिखाई जाएंगी, इनमें गरुड़, गज, अश्व और मगर शामिल हैं। इस भवन में तीन द्वार बनाए गए हैं, जिन्हें ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार नाम दिया गया है। इस इमारत में एक भव्य संविधान हॉल, एक लाउंज, एक लाइब्रेरी, डाइनिंग हॉल और पार्किंग का स्थान भी होगा। लोकतंत्र के मंदिर के निर्माण के लिए पूरे देश से अनोखी और हमारी विरासत से संबंधित सामग्रियों को जुटाया गया है, जो एक भारत-श्रेष्ठ भारत की सच्ची भावना को दर्शाता है। कामना है कि, यह नई संसद भारत को उन्नति पथ पर ले जाने में सहायक और और पूरे देश के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो।