देवो के देव महादेव कहे जाने वाले भगवान अन्य सभी भगवानों से भोले माने जाते हैं। इसलिए इन्हे भोलेबाबा के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने भक्तों की प्रर्थना से जल्दी प्रभावित होते हैं। इन्हे प्रसन्न करना अन्य भगवानों की तुलना में काफी सरल माना गया है। धरती पर भगवान भोलेनाथ के दो रूप देखने को मिलते है। एक तो साक्षात वे खुद जिसमें वह एक मूर्ति के रूप में विराजित रहते है। और दूसरा शिवलिंग, जी हां शिवलिंग के रूप में भी भगवान भोलेनाथ के दर्शन किए जा सकते हैं। आमतौर पर अधिकतर जगह हमें भगवान भोलेनाथ के इसी रूप के दर्शन होते हैं।
भगवान शिव पर अर्पित करने हेतु बिल्व पत्र तोडऩे से पहले निम्न मंत्र का उच्चारण करने के उपरांत बिल्व वृक्ष को प्रणाम करना चाहिए, उसके बाद बिल्व पत्र तोडऩे चाहिए। बिल्व पत्र तोडऩे का मंत्र-
अमृतोद्धव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।
गृहामि तव पत्रणि श्पिूजार्थमादरात्।।
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को, संक्रांति के समय और सोमवार को बिल्व पत्र कभी नहीं तोडऩे चाहिए, किंतु बिल्व पत्र शंकर जी को बहुत प्रिय हैं। अत: निषिद्ध समय से पहले दिन का रखा बिल्व पत्र ही चढ़ाना चाहिए। बिल्व पत्र, धतूरा और पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे ही इन्हें भगवान पर चढ़ाना चाहिए। उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपर की ओर होता है, अत: चढ़ाते समय इनका मुख ऊपर की ओर ही रखना चाहिए।
दूर्वा एवं तुलसी दल को अपनी ओर और बिल्व पत्र नीचे मुख पर चढ़ाना चाहिए। दाहिने हाथ की हथेली को सीधी करके मध्यमा, अनामिका और अंगूठे की सहायता से फूल एवं बिल्व पत्र चढ़ाने चाहिए। भगवान शिव पर चढ़े हुए पुष्पों एवं बिल्व पत्रों को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारें।
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