तालिबान शांति योजना का अमल में आना कई मायनों में महत्वपूर्ण है. ट्रंप प्रशासन के लिए ये शांति योजना काफी खास है. इसके जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक तीर से कई निशाने साधने में लगे हैं. इसमें अहम है, 2020 में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव. यही वजह है कि अमेरिका में पक्ष और विपक्ष की निगाह इस समझौते पर टिकी है.राष्ट्रपति चुनाव के महासमर में रिपब्लिकन पार्टी को इस समझौते से बहुत उम्मीद है, वहीं विपक्ष ने अमेरिकी सुरक्षा का हवाला देकर अप्रत्यक्ष रूप से ट्रंप प्रशासन को सावधान किया है. आइए जानते हैं कि 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में क्या किया था वादा. क्या तालिबान समझौते का असर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा. विपक्ष ने इस समझौते को लेकर किस तरह अपनी आपत्ति दर्ज की है. इसके साथ यह भी देखेंगे कि इसमें भारत की बड़ी क्या बड़ी चिंता है. भारत इस समझौते पर अपना क्या नजरिया रखता है. उसे किस बात का भय सता रहा है.
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यदि अमेरिका और तालिबान शांति योजना अगर अमल में आई तो इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा. इसके साथ भारत की बड़ी चिंता क्या है. अमरीका और तालिबान के बीच बातचीत के दौरान भारत के कुछ हलक़ों में यह चिंता लाजमी है. अगर भविष्य की अफ़ग़ानिस्तान सरकार में तालिबान की महत्वपूर्ण भूमिका रही तो अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन को भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सकता है. खासकर तब जब तालिबान को पाकिस्तान के नजदीक देखा जाता है और पूर्व में भारत विरोधी चरमपंथी गुट अफगानिस्तान में अपने ट्रेन कैंप लगाते रहे हैं. भारत को बड़ी चिंता यह है अगर भविष्य में अफगानिस्तान की सरकार में तालिबान दखल बढ़ता है तो यह उसके लिए शुभ नहीं होगा. दरअसल, तालिबान पाकिस्तान के काफी निकट है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि तालिबान शांति योजना का ट्रंप कार्ड अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कितना रंग दिखाएगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन उन्होंने अपनी ट्रंप चाल चाल चल दी है. दरअसल, 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में ही ट्रंप ने वादा किया था कि वह अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया बहाल करके अमेरिकी सैनिकों को देश बुलाएंगे. इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले यह उनकी नाक का विषय बन चुका है.
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