भारत की 6 लाख एकड़ जमीन का मालिक है Waqf Board ! अब हिन्दुओं के 18 गाँवों पर हुआ कब्जा

भारत की 6 लाख एकड़ जमीन का मालिक है Waqf Board ! अब हिन्दुओं के 18 गाँवों पर हुआ कब्जा
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चेन्नई: तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड ने हिंदू बहुल गाँवों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है। इसको लेकर पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है। लोग सवाल कर रहे हैं कि, आखिर सदियों से ग्रामीण जिस जगह पर रह रहे हैं, जिस जमीन के सरकारी दस्तावेज भी उनके पास हैं, वो जमीन अचानक वक्फ बोर्ड की कैसे हो गई ? क्या वक्फ बोर्ड को इस तरह किसी भी जमीन को हथियाने का अधिकार है ? अब इसको लेकर वक्फ बोर्ड की प्रतिक्रिया सामने आई है, वक्फ ने कहा है कि इस भूमि का आवंटन सन 1954 में सरकार द्वारा सर्वेक्षण के बाद किया गया था।

बता दें कि तमिलनाडु के त्रिची जिले के 18 गाँवों की 389 एकड़ जमीन को वक्फ बोर्ड ने मुस्लिमों की भूमि घोषित कर दिया था। थिरुचेंदुरई गाँव का एक ग्रामीण जब अपनी जमीन बेचने के लिए रजिस्ट्रार के दफ्तर गया, तो उसे बताया गया कि यह वक्फ की संपत्ति है और उसे अपनी ही जमीन बेचने के लिए अब वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लेना होगा। वक्फ बोर्ड के प्रमुख एम अब्दुल रहमान ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, '1954 से हमारे वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में सरकार द्वारा सर्वेक्षण की गई जमीन की जानकारी दर्ज है। जानकारी के मुताबिक, हमने उप-पंजीयक कार्यालय को सर्वेक्षण तादाद और गाँव के नाम के साथ विवरण भेजा है। ये गाँव एक विशाल क्षेत्र में हैं।'

रहमान ने आगे कहा कि, 'हम अर्काइव से डिटेल निकाल कर उप-पंजीयक दफ्तर को देंगे। लोग जमीन पर अपना कामकाज जारी रख सकते हैं, मगर वे इसके स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते।' मंदिर पर कब्जे का खंडन करते हुए रहमान बोले कि, 'हमें गर्व है कि वक्फ की संपत्ति मंदिरों और इसके तालाबों के निर्माण के लिए दी गई थी। हमने एक हिंदू किसान को खेती के लिए 300 एकड़ भूमि प्रदान की है।' 

यह पूरा मामला तब उजागर हुआ, जब राजगोपाल नाम के एक व्यक्ति ने अपनी 1 एकड़ जमीन राजराजेश्वरी नामक व्यक्ति को बेचने की कोशिश की। राजगोपाल जब अपनी जमीन बेचने हेतु रजिस्ट्रार कार्यालय पहुँचे, तो उन्हें पता चला कि वे जिस जमीन को बेचने आए हैं, वह उनकी है ही नहीं बल्कि, अब वो जमीन वक्फ की हो चुकी है और अब उसका मालिक वक्फ बोर्ड है। राजगोपाल ने जब ग्रामीणों को यह बात बताई, तो पूरा गाँव यह जानकर हैरान रह गया कि जिस भूमि पर वह कई सदियों से रहते आ रहे हैं, वह जमीन अब उनकी नहीं है। ग्रामीणों ने सोचा कि वक्फ बोर्ड पूरे गाँव का मालिक होने का दावा कैसे कर सकता है, जब उनके (ग्रामीणों के) पास आवासीय और कृषि दोनों के लिए उनके पास जमीनों के पूरे कागज़ात मौजूद हैं। इसके बाद, परेशान ग्रामीण इस पूरे मामले को लेकर जब कलेक्टर के पास पहुँचे तो उन्होंने कहा है कि इसकी छानबीन करनी पड़ेगी, उसके बाद ही किसी तरह की कार्रवाई हो सकती है।

वहीं, त्रिची जिले के भाजपा नेता अल्लूर प्रकाश ने कहा है कि, 'त्रिची के निकट तिरुचेंदुरई गाँव, हिंदुओं का एक कृषि क्षेत्र है। वक्फ बोर्ड का तिरुचेंथुरई गांव से क्या ताल्लुक है?' उन्होंने आगे कहा 'इस गाँव में मानेदियावल्ली समीथा चंद्रशेखर स्वामी मंदिर मौजूद है। कई दस्तावेजों और सबूतों के अनुसार, यह मंदिर 1,500 वर्ष प्राचीन है। मंदिर के पास तिरुचेंथुरई गाँव और उसके आसपास 369 एकड़ की संपत्ति है। क्या यह मंदिर संपत्ति भी वक्फ बोर्ड के स्वामित्व में है? इसका आधार क्या है? वक्फ बोर्ड बगैर किसी बुनियादी सबूत के कैसे घोषणा कर सकता है कि यह भूमि उसकी है। जबकि, गाँव के लोगों के पास जमीन के जरूरी दस्तावेज हैं।' इस पूरे घटनाक्रम में प्रथमदृष्टया तो वक्फबोर्ड की मनमानी नज़र आती है, हालांकि अब देखना ये होगा राज्य की एमके स्टालिन सरकार इस मामले में क्या कार्रवाई करती है ? 

भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूमि मालिक है वक्फ बोर्ड :-

भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक काल से ही माना जाता है। सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम घोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गाँव दिए थे और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंपा था। जैसे-जैसे भारत में मुस्लिम शासन फैलता गया, देश में वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती चली गई। 19वीं शताब्दी के आखिर में भारत में वक्फ को समाप्त करने की कोशिश की गई थी। उस दौरान ब्रिटिश काल के दौरान में लंदन की प्रिवी काउंसिल में एक वक्फ संपत्ति पर विवाद शुरू हुआ था। इस मामले की सुनवाई करने वाले चार ब्रिटिश जजों ने वक्फ को “सबसे खराब और सबसे हानिकारक” करार देते हुए अमान्य घोषित कर दिया था।

लेकिन, हिंदुस्तान में इस फैसले को स्वीकार नहीं किया गया और 1913 के मुसलमान वक्फ मान्यकरण अधिनियम से भारत में वक्फ को बचा लिया गया था। इसके बाद से अब तक वक्फ पर अंकुश लगाने के लिए कोई कोशिशें नहीं की गई हैं। यही वजह है कि आज वक्फ बोर्ड,  सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भूमि मालिक है। यह भी विडम्बना ही है कि, 1947 में देश के बंटवारे के समय लगभग 25 फीसद मुस्लिमों को 33 फीसद भारत की धरती का हिस्सा और खजाना देने के बाद भी, भारत में वक्फ बोर्ड 6 लाख एकड़ जमीन (2006 सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार) का मालिक बना हुआ है। क्या ये मान लिया जाए कि भारत के मूल निवासियों, हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध का देश में कुछ भी नहीं है ? 

 

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