भोपाल: स्वतंत्रता के आंदोलन में मध्यप्रदेश का जननायक टंट्या भील उन महान नायकों में सम्मिलित है, जिन्होंने अंतिम सांस तक अंग्रेजी सत्ता की नाक में दम कर रखा था। टंट्या भील को आदिवासियों का रॉबिनहुड भी बोला जाता है, क्योंकि वो अंग्रेजों के भारत की जनता से लूटे गए माल को अपनी जनता में ही बांट देते थे। टंट्या भील को टंट्या मामा के नाम से भी जाना जाता है। आज मतलब 4 दिसंबर को उनका बलिदान दिवस मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं उनकी शौर्य गाथा को...
बता दें कि इंदौर से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर पातालपानी क्रांतिकारी टंट्या भील की कर्म स्थली है। यही वह स्थान है जहां टंट्या भील अंग्रेजों की रेलगाड़ियों को तीर कामठी तथा गोफन के दम पर अपने साथियों के साथ रोक लिया करते थे। इन रेलगाड़ियों में भरा धन, जेवरात, अनाज, तेल एवं नमक लूट कर निर्धनों में बांट दिया करते थे। टंट्या भील देवी के मंदिर में आराधना कर शक्ति प्राप्त करते थे और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर आस पास घने जंगलों में रहा करते थे। टंट्या भील 7 फीट 10 इंच के थे तथा बहुत शक्तिशाली थे, उन्होंने अंग्रेजों को थका दिया था।
रॉबिनहुड बनने की कहानी:-
टंट्या एक गांव से दूसरे गांव घूमते रहे। वह मालदारों से माल लूटकर वह निर्धन व्यक्तियों में बांटने लगे। लोगों के सुख-दुःख में सहयोगी बनने लगे। इसके अतिरिक्त निर्धन कन्याओं की शादी कराना, निर्धन और असहाय लोगों की सहायता करने से टंट्या मामा सबके प्रिय बन गए, जिससे उसकी पूजा होने लगी। बता दें कि रॉबिनहुड विदेश में कुशल तलवारबाज एवं तीरंदाज था, जो अमीरों से माल लूटकर निर्धन व्यक्तियों में बांटता था।
कौन थे टंट्या मामा?
इतिहासकारों के अनुसार वर्ष 1842 खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में भाऊसिंह के घर टंट्या का जन्म हुआ था। पिता ने टंट्या को लाठी-गोफन और तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया। टंट्या ने धर्नुविद्या के साथ-साथ लाठी चलाने एवं गोफन कला में भी दक्षता हासिल कर ली। युवावस्था में अंग्रेजों के सहयोगी साहूकारों की तंग आकर वह अपने साथियों के साथ जंगल में कूद गया। टंट्या मामा भील ने अंतिम सांस तक अंग्रेजी सत्ता की ईंट से ईंट बजाने की मुहिम जारी रखी थी।
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