आज यानी 18 अप्रैल को तात्या टोपे की पुण्यतिथि है. आज इस विशेष अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी अहम जानकारी आपको देने वाले है. बता दे कि तात्या टोपे का जन्म 1814 में येवला में हुआ. तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे. पिता का नाम पांडुरंग त्र्यंबक भट था तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था. वे एक देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि उनके पिता बाजीराव पेशवा के धर्मदाय विभाग के प्रमुख थे. उनकी विद्वत्ता एवं कर्तव्य परायणता देखकर बाजीराव ने उन्हें राज्सभा में बहुमूल्य नवरत्न नवरत्नों से जड़ी हुई टोपी देकर उनका सम्मान किया था, तबसे उनका उपनाम 'टोपे' पड़ गया.
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आजादी की लड़ाई के समय तात्या ने 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई के वीरगति के पश्चात गुरिल्ला युद्ध पद्धति की रणनीति अपनाई. तात्या टोपे द्वारा गुना जिले के चंदेरी, ईसागढ़ के साथ ही शिवपुरी जिले के पोहरी, कोलारस के वनों में गुरिल्ला युद्ध करने की अनेक दंतकथाएं हैं. वही, 7 अप्रैल 1859 को तात्या शिवपुरी-गुना के जंगलों में सोते हुए धोखे से पकड़े गए. बाद में अंग्रेजों ने शीघ्रता से मुकदमा चलाकर 15 अप्रैल को 1859 को राष्ट्रद्रोह में तात्या को फांसी की सजा सुना दी. बाद में 18 अप्रैल 1859 की शाम ग्वालियर के पास शिप्री दुर्ग के निकट क्रांतिवीर के अमर शहीद तात्या टोपे को फांसी दे दी गई. इसी दिन वे फांसी का फंदा अपने गले में डालते हुए मातृभूमि के लिए न्यौछावर हो गए थे.
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