चीन के छोटे से शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस आज पूरी दुनिया में महामारी का रूप ले चुका है। कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए लोग अपने घरों में कैद हैं। ऐसे में लोगों की निर्भरता इंटरनेट पर है। स्कूल, कॉलेज की क्लासेज भी ऑनलाइन ही हो रही हैं। इसी बीच एक नया ट्रेंड टेलीमेडिसिन का शुरू हुआ है। टेलीमेडिसिन का मतलब फोन या वीडियो कॉल पर इलाज करवाना है। लॉकडाउन की स्थिति में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी टेलीमेडिसिन की सलाह दी है ताकि अस्पताल में लोग कम-से-कम पहुंचें। उम्मीद की जा रही है कि भारत में टेलीमेडिसिन का ट्रेंड शुरू हो सकता है जिसका खामियाजा अस्पतालों को भुगतना पड़ सकता है।
टेलीमेडिसिन के लिए क्या है भारत सरकार की गाइडलाइन?
इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने नीति आयोग के साथ मिलकर पिछले महीने ही टेलीमेडिसिन को लेकर एक गाइडलाइन जारी की है जिसके मुताबिक टेलीमेडिसिन के जरिए सिर्फ रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर ही इलाज कर सकते हैं। टेलीमेडिसिन में डॉक्टर्स वीडियो, टेक्स्ट मैसेज, ईमेल और ऑडियो कॉल के जरिए लोगों का इलाज कर सकते हैं। सरकार की गाइडलाइन ने टेलीमेडिसिन स्टार्टअप्स को एक नई दिशा दे दी है।
अस्पताल में आधी हो सकती है मरीजों की संख्या
पिछले साल मैककिंसी डिजिटल इंडिया ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक टेलीमेडिसिन मॉडल के कारण अस्पताल जाने वाले मरीजों की संख्या आधी हो सकती है, क्योंकि अस्पताल जाकर डॉक्टर से दिखाने के मुकाबले घर बैठे फोन पर सलाह लेने में 30 फीसदी कम खर्च आता है। एक अनुमान है कि टेलीमेडिसिन की वजह से साल 2025 तक 300-375 अरब रुपये की बचत हो सकती है। शुरुआती दौर में ही भारत टेलीमेडिसिन के मामले में दुनिया के टॉप 10 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है।
पहली बार 1970 में हुआ था टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1970 में पहली बार टेलीमेडिसिन यानी दूर से इलाज शब्द का इस्तेमाल हुआ था। उस दौरान फोन पर लक्षण के आधार पर बीमारी की पहचान और इलाज करने की शुरुआत हुई थी। टेलीमेडिसिन में वीडियो कॉलिंग के जरिए भी मरीज को देखा जाता है और ब्लड प्रेशर मॉनिटर के डाटा के आधार दवा दी जाती है। कुल मिलाकर कहें तो टेलीमेडिसिन में डॉक्टर्स दूर बैठे मरीज का इलाज करने की कोशिश करते हैं। कोरोना महामारी में भी ऐसा ही हो रहा है। चैटबॉट से लोग लक्षण बताकर कोरोना से जोखिम की जानकारी ले रहे हैं।
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