पटना: रामनगरी अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चरम पर हैं. एक ओर आज से प्राण प्रतिष्ठा की सूचना देने के लिए आज से विश्व हिन्दू परिषद (VHP) का घर- घर अक्षत निमंत्रण देने का काम प्रारंभ हो चूका है, वहीं इसको लेकर विवादित बयानबाजी भी जारी है. इस बीच बिहार की राजधानी पटना में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) द्वारा एक पोस्टर लगाया गया है. इस पोस्टर में मंदिर को मानसिक गुलामी का मार्ग कहा गया है।
लालू-राबड़ी यादव के घर के बाहर कई तरह के पोस्टर लगे हैं, इन्ही पोस्टर्स में एक पोस्टर ऐसा भी है, जिसमें मंदिर को मानसिक गुलामी का मार्ग बताया गया है। उस पोस्टर में लिखा है कि, 'मंदिर का मतलब मानसिक गुलामी का मार्ग और स्कूल का मतलब होता है जीवन में प्रकाश का मार्ग. जब मंदिर की घंटी बजती है तो हमें संदेश देती है कि हम अंधविश्वास, पाखंड, मूर्खता और अज्ञानता की ओर बढ़ रहे हैं और जब स्कूल की घंटी बजती है तो हमें यह संदेश मिलता है कि हम तर्कपूर्ण ज्ञान और वैज्ञानिकता व प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं. अब तय करना कि आपको किस ओर जाना चाहिए ? सावित्री बाई फुले'। दरअसल, RJD 7 जनवरी को रोहतास में सावित्री बाई फुले की जयंती पर एक कार्यक्रम कर रही है, जिसका उद्घाटन बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर करने वाले हैं. बता दें कि, बिहार के ये शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर अपनी हिन्दू विरोधी टिप्पणियों के लिए कुख्यात हैं। चंद्रशेखर ने तो यहाँ तक कह दिया था कि, राम मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं थे, बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम तो पैगम्बर मोहम्मद थे। इससे पहले उन्होंने रामचरितमानस को भी नफरत फैलाने वाला ग्रन्थ बताया था। दरअसल, बिहार में मुस्लिम-यादव फैक्टर RJD का मुख्य वोट बैंक रहा है। ऐसे में पार्टी पर हमेशा आरोप लगते रहते हैं कि वो मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए हिन्दू धर्म का अपमान करती रहती है, लेकिन क्या RJD नेताओं के ऐसे बयानों से यादव नाराज़ नहीं होते होंगे ? क्योंकि यादव भी खुद को श्रीकृष्ण का वंशज मानते हैं और राम-कृष्ण में कोई भेद नहीं है।
अगर लालू परिवार सहित मंदिर जाएं तो क्या वे मानसिक गुलाम ?
वैसे मंदिर जाना या न जाना, ये हर इंसान का एक व्यक्तिगत फैसला है। लेकिन लालू परिवार के बाहर उनकी पार्टी RJD ने जो पोस्टर लगाया है, वो उनकी मर्जी के बिना लगा हो ऐसा हो नहीं सकता। उस पोस्टर में मंदिर को मानसिक गुलामी का मार्ग बताया गया है। लेकिन आप खुद RJD सुप्रीमो लालू यादव की कुछ पिछली यात्राओं पर गौर करें तो वे भी परिवार सहित मंदिर-मंदिर घुमते नज़र आए हैं। तो क्या ऐसे में लालू यादव और उनके परिवार को मानसिक गुलाम कहा जाना उचित होगा ? अगस्त 2023 में लालू अपनी पत्नी राबड़ी देवी के साथ अपने पैतृक गाँव फुलवरिया पहुंचे थे, जहाँ उन्होंने दुर्गा मंदिर में पूजा अर्चना की थी। सितम्बर 2023 में लालू बाबा वैजनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने पहुंचे थे। अक्टूबर 2023 में लालू अपनी बेटियों के साथ बांकेबिहारी शिव मंदिर गए थे और पूजा-अर्चना की थी। दिसंबर 2023 में लालू, तेजस्वी-तेजप्रताप सहित पूरे परिवार को लेकर तिरुपति बालाजी मंदिर दर्शन करने गए थे।
इसके अलावा 2023 में लालू गोपालगंज के थावे, मुंबई के सिद्धि विनायक, सोनपुर के हरिहरनाथ मंदिर में दर्शन करते देखे गए हैं, तो क्या RJD नेता अपने पार्टी अध्यक्ष को ही 'मानसिक गुलाम' कह सकेंगे ? या फिर ये RJD का एक हथकंडा है, जिसके जरिए वो लोगों को भड़का सके, इससे मंदिर जाने वाले और इसका विरोध करने वाले दो गुट बन जाएं और फिर उन टुकड़ों पर चुनावी रोटियां सेंकना आसान हो। क्योंकि, जिस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष हर महीने मंदिर जा रहा हो, उसके घर के सामने उसकी पार्टी ही ये पोस्टर लगा दे कि मंदिर गुलामी के प्रतीक हैं, तो इससे क्या समझा जाए ? क्या लालू ने अपने घर के सामने लगे पोस्टर नहीं देखे होंगे ?
आलोचकों का ये भी कहना है कि, ये विपक्षी दलों का एक एजेंडा है, जिससे वो हिन्दुओं को टुकड़ों में बांटकर उन्हें वोट में तब्दील कर सकें। जातिगत जनगणना भी इसी का एक हिस्सा है, क्योंकि विपक्ष ये अच्छी तरह जानता है कि, हिन्दू जब तक हिन्दू बनकर वोट कर रहा है, तब तक भाजपा को हराना आसान नहीं है, तो हिन्दुओं की इस एकता को किसी भी तरह खंडित किया जाए। क्योंकि मुस्लिम वोट तो एकमुश्त उन्हें शुरू से मिलता ही रहा है, यदि 20-25 फीसद हिन्दू भी भड़ककर वोट में बदल जाते हैं, तो सत्ता का रास्ता आसान हो सकता है। आलोचकों का कहना है कि यही कारण है, जिसके चलते विपक्ष के नेता, चाहे वो उदयनिधि स्टालिन का सनातन विरोधी भाषण हो, चाहे राहुल गांधी का हिन्दू और हिंदुत्व को अलग-अलग बताना हो, या फिर RJD नेताओं के हिन्दू विरोधी बयान हों, ये सब एक ही मिशन का हिस्सा हैं। राहुल गांधी भी एक बयान में कह चुके हैं कि, मंदिर जाने वाले लोग लडकियां छेड़ते हैं। आलोचक अपनी बातों को साबित करने के लिए तर्क देते हैं कि, क्या आपने किसी भी विपक्षी नेता को किसी दूसरे धर्म (हिन्दू के अलावा) के बारे में टिप्पणी करते देखा है ? क्योंकि, जातिवाद हर धर्म में है, इस्लाम में भी 73 फिरके हैं, सबमे एक-दूसरे को लेकर कुछ न कुछ विरोध है, ईसाईयों में भी कैथोलिक, प्रोटोस्टेंट, यहोवा साक्षी, जैसी कई शाखाएं हैं, जिनमे एक दूसरे में शादियां तक नहीं होती। लेकिन, नेता वहां मौन रहते हैं, क्योंकि वो उनका टारगेट नहीं है।
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