बीजिंग: पूर्वी लद्दाख के गलवन घाटी में बीते 5 जून 2020 को भारत और चीन के मध्य हुए खूनी संघर्ष ने मध्य युग की यादें वापस से तजा हो गयी है. जिसके साथ इस संघर्ष ने दुनिया के अन्य हिस्सों में चीनी व्यवहार से पर्दा हटा दिया है. दोनों देशों के बीच 50 साल बाद इस तरह का खूनी संघर्ष देखने को मिला है. जंहा दोनों सेनाओं के बीच हुए संघर्ष में कई सैनिकों की नीचे बह रही नदी में डूबने और खड़ी चट्टानों के नीचे गिरने से मौत हो चुकी थी.
चीन ने संघर्ष के लिए भारतीय सैनिकों को उकसाया: मिली जानकारी के अनुसार ब्रिटेन के एक विशेषज्ञ ने इसे संघर्ष को 1967 के बाद से इसे एक बड़ा खूनी संघर्ष कहा जा रहा है. उन्होंने कहा यह संघर्ष बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गया. यूके स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (IISS) में साउथ एशिया के रिसर्च फेलो एंटोनी लेवेसीस ने दोनों सेनाओ के बीच हुए संघर्ष पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि भारतीय पक्ष सहित जो सबूत उभर कर सामने आए हैं उससे यह प्रमाणित हो चुका है कि चीन ने इस संघर्ष के लिए भारतीय सैनिकों को उकसाया गया है. चीन ने एक उत्प्रेरक के रूप में काम कर रहा है.
खूनी संघर्ष के पहले चीन ने तैयार की रणनीति: वहीं उन्होंने कहा चीन इस संघर्ष के लिए पूरी तरह से तैयार था. यह उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा बन चुका है. विशेषज्ञ ने कहा कि 9 से 16 जून तक गलवन घाटी में चीन के 200 वाहनों की तैनाती की थी. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर मंशा सही थी तो इतने वाहन गलवन घाटी में क्यों थे. चीन ने गलवन घाटी में सैनिकों की एक मजबूत स्थिति के निर्माण के बाद इस संघर्ष के लिए भारतीय सैनिकों को प्रेरित किया. लेवेसीस ने कहा बीजिंग इस संघर्ष के लिए अकेले जिम्मेदार है.
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