जहाँ शादी की बात आती है, वहां शहनाई की आवाज़ खुदबखुद कानों में गूंजने लगती है, जिसका श्रेय जाता है उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को जिन्होंने शहनाई को विश्व भर में पहचान दिलाई. बिस्मिल्लाह खान जिनके खानदान के लोग भारतीय शास्त्रीय संगीत में परिपूर्ण थे, महज 6 वर्ष की उम्र में ही बिस्मिल्लाह खान अपने पिता के साथ बनारस आ गए और अपने चाचा अली बख्श "विलायती" से शहनाई बजाना सीखा.
धार्मिक रूप से एक सच्चे मुसलमान होते हुए वह ज्ञान की देवी सरस्वती के आराधक थे, वे अक्सर काशी के बाबा विश्वनाथ मन्दिर में बैठकर अथवा गंगा के किनारे पर शहनाई बजाया करते थे. उन्होंने शहनाई को पूरे विश्व में पहचान दिलाई. इसके लिए उन्हें वर्ष 2001 में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके अतिरिक्त उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया.
लेकिन अब पता चला है कि, 22 अगस्त भाषा शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को दिए गए पद्म विभूषण प्रमाणपत्र को दीमकों ने आंशिक रूप से खराब कर दिया. इस अवसर पर भारत रत्न से सम्मानित शहनाई वादक को मिले प्रमाणपत्रों को यहां हादा सराय में खान के परिवार के सदस्यों ने निकाला तो पाया कि 1980 में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी द्वारा उनको दिये गये पद्म विभूषण प्रमाणपत्र को दीमकों ने आंशिक रूप से खा लिया.