सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर करने की दिशा में सरकारें पहल कर रही हैं। वही इसी कड़ी बने नियम के तहत अब करीब सात हजार प्राथमिक व उच्च प्राथमिक शिक्षकों की नौकरी पर खतरा मंडरा गया है। किसी भी वक्त इन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है। असल में , सरकार ने कक्षा पहली से आठवीं तक के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET - Teachers Eligibility Test) उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया है। जिन शिक्षकों ने ये परीक्षा पास नहीं की, परन्तु शिक्षक की नौकरी कर रहे हैं, उन्हें 30 मार्च 2019 तक टीईटी उत्तीर्ण करने का समय दिया गया था। ये फैसला महाराष्ट्र सरकार ने लिया था।
समय सीमा खत्म हुए करीब एक साल गुजर चुका है, परन्तु अब भी करीब सात हजार शिक्षक ये परीक्षा पास करने में असफल रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, इन शिक्षकों का वेतन भी एक जनवरी 2020 से बंद किया जा चुका है। अब इनकी नौकरी पर खतरा है। वही महाराष्ट्र सरकार के टीईटी अनिवार्य करने के फैसले को शिक्षकों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस आरआई चागला की बेंच ने सरकार की टीईटी अनिवार्यता की नीति में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि 'जनहित के लिए यही उचित है। ऐसी नीतियां शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए बनाई जाती हैं। ये तभी हो सकता है जब योग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो।' कोर्ट ने कहा कि 'बच्चे का व्यक्तित्व शुरुआती शिक्षा से ही बनने लगता है। यदि इस समय उनमें सही मूल्य नहीं बताए गए, उन्हें गणित, सामाजिक अधय्यन, भाषा जैसे विषयों की सही समझ नहीं दी गई, तो शिक्षा से उनकी रुचि हट सकती है।'
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