देहरादून: अंग्रेजी हुकुमत का गवाह रहा तथा देश को कौस्तुभानंद भट्ट जैसे बड़े-बड़े सैन्य अफसर एवं शिक्षाविद देने वाले 103 साल पुराना प्राथमिक विद्यालय सिरपोली अब बंद हो रहा है। छात्रसंख्या कम होने की वजह से शिक्षा विभाग ने इस स्कूल को बंद कर दिया है। इस स्कूल के बंद होने से आसपास गांव के रहने वाले बच्चों के सामने पढ़ाई का खतरा खड़ा हो गया है। आर्थिक तौर पर संपन्न माता-पिता तो अपने बच्चों को 12 किमी दूर जिला मुख्यालय भेज रहे हैं, किन्तु मजदूरी और छोटा-मोटा काम कर अपना परिवार पालने वाले निर्धन वर्ग के लोगों के सामने बच्चों को पढ़ाना चुनौती बन गया है। गुलाम भारत में सीमांत के गुरना कांटेरावल ग्रामसभा के सिरपोली में साल 1920 में प्राथमिक विद्यालय अस्तित्व में आया।
स्थानीय लोग बताते हैं कि यह विद्यालय गुरना से घाट के बीच का यह पहला विद्यालय था। पनार से भी बच्चे यहां पढ़ाई करने पहुंचते थे। लगभग 103 सालों तक इस विद्यालय का संचालन हुआ। इस दरमियान यहां से पढ़कर अपने मैधावी निकले, जिन्होंने देश-विदेश में सीमांत का नाम रोशन किया, किन्तु बदलते वक़्त के साथ दूसरों का भविष्य संवारने वाला यह विद्यालय अतीत का हिस्सा बन गया है। सरकारी तंत्र इस विद्यालय को सहेज नहीं सका। अध्यापकों के अभाव में इस स्कूल से निरंतर छात्रसंख्या कम होती चली गई। नतीजन इस शैक्षिक सत्र विभाग को विद्यालय बंद करना पड़ा।
सिरपोली, सेरीकांडा, तोली, निसनी, शिमली, बेड़ा, इग्यारदेवी, घिघरानी, काटे आदि गांवों का एकमात्र प्राथमिक विद्यालय बंद होने से गांव के लोगों में आक्रोश है। पूर्व उप प्रमुख राजेंद्र भट्ट, प्रियंका पांडे प्रधान काटे, प्रधान इग्यार ललिता पांडे, पूर्व कै. भूपेंद्र सिंह, पूर्व प्रधान दिवान सिंह, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य कमला भट्ट, नरेश पांडे, सैनिक संगठन के राजेश भट्ट, कुण्डल सिंह, नवीन पांडे, केशव भट्ट, भुवन पांडे ने बताया कि का कहना है कि यदि बच्चों के भविष्य को देखते हुए जल्द ही आंदोलन करेंगे। बता दे कि सिरपोली में साल 1900 में विद्यालय खोलने की पहल आरम्भ हुई, 14 वर्ष पश्चात् वर्ष 1914 में स्कूल का निर्माण आरम्भ हुआ तथा 6 वर्ष पश्चात् विद्यालय में पहली बार कक्षाएं संचालित हुई।
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