नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रतिबंधित कट्टरपंथी समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के पूर्व प्रमुख ई अबूबकर को जमानत देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि PFI भारत की एकता और संप्रभुता को चुनौती देना चाहता था। न्यायालय के विस्तृत आदेश के अनुसार, PFI की योजना हिंदू नेताओं की हत्या, सुरक्षा बलों पर हमला करने और 2047 तक भारत में खिलाफत शासन स्थापित करने की थी।
उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि , "ऐसे बयानों से यह भी पता चलता है कि इस तरह के हथियार प्रशिक्षण का उद्देश्य लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंकना और भारत के संविधान की जगह, खिलाफत शरिया कानून लागू करना था।" जस्टिस सुरेश कुमार कैत और मनोज जैन की पीठ ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) मामले में अबूबकर को जमानत देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि PFI का उद्देश्य न केवल सरकार को उखाड़ फेंकना है, बल्कि भारत की एकता और संप्रभुता पर भी हमला करना है। उच्च न्यायालय ने कहा कि, "हिंदू नेताओं की लक्षित हत्या और सुरक्षा बलों पर हमला करने तथा 2047 तक इस्लामी शासन स्थापित करने की योजना स्पष्ट रूप से संकेत देती है कि इसका लक्ष्य 'भारत की एकता और संप्रभुता' को चुनौती देना था, न कि केवल 'सरकार को उखाड़ फेंकना'। इस प्रकार, उद्देश्य और इसे प्राप्त करने का तरीका, दोनों ही दोषपूर्ण प्रतीत होते हैं।"
हाई कोर्ट ने कहा कि PFI ने आतंकवादी शिविर आयोजित किए, मुस्लिम युवकों की भर्ती की और उन्हें कट्टरपंथी बनाया, तथा उन्हें देश भर में आतंकवादी वारदातों को अंजाम देने के लिए हथियार प्रशिक्षण प्रदान किया। न्यायालय ने कहा कि, "हमने पहले ही उल्लेख किया है कि लक्ष्य वर्ष 2047 तक खिलाफत स्थापित करना था और कभी-कभी, ऐसे किसी भी दूरगामी उद्देश्य को प्राप्त करने में वर्षों लग जाते हैं। यह कहना कि कथित तैयारी कार्य और अंतिम उद्देश्य के बीच कोई निकटता नहीं थी, इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि इस तरह की गतिविधियाँ निरंतर, सतत और निरंतर होती हैं।
अदालत ने माना कि, संगठन आतंकी शिविरों का आयोजन कर रहा था, मुस्लिम युवकों की भर्ती कर रहा था और उन्हें कट्टरपंथी बना रहा था और देश भर में आतंकी कृत्य करने के उद्देश्य से हथियार-प्रशिक्षण दे रहा था और इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि दोनों के बीच कोई निकटता नहीं थी या हथियार-प्रशिक्षण केवल बचाव का कार्य था, खासकर जब गवाहों के बयान, स्पष्ट रूप से, इसके विपरीत बोलते हैं और अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हैं।" अबूबकर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने 2022 में पीएफआई पर बड़ी कार्रवाई के दौरान गिरफ्तार किया था।
जमानत देने से इनकार करते हुए अदालत के आदेश में कहा गया है कि, "आरोप पत्र में लगाए गए आरोप और कथन, संरक्षित गवाहों सहित गवाहों द्वारा दिए गए बयान, अपीलकर्ता द्वारा दिए गए भाषणों का लहजा और भाव, यह तथ्य कि अपीलकर्ता पहले आतंकी संगठन SIMI से निकटता से जुड़ा था और जब इसे प्रतिबंधित कर दिया गया, तो वह PFI में शामिल हो गया; जिस तरह से वह PFI बैंक खाते से राशि मंजूर करता रहा है और जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री का समग्र प्रभाव; इस तथ्य के बारे में हमारे मन में अनिश्चितता का कोई तत्व नहीं है कि UAPA के अध्याय- IV और अध्याय-VI के तहत आने वाले अपराधों के संबंध में अभियोजन पक्ष का मामला प्रथम दृष्टया सत्य है।"
अदालत के आदेश के अनुसार, कई संरक्षित गवाहों के बयानों से संकेत मिलता है कि PFI ने RSS को निशाना बनाया और मुस्लिम युवाओं को इसके खिलाफ हथियार उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। आदेश में कहा गया है कि, "संरक्षित गवाह के ने यह भी कहा कि प्रशिक्षण के दौरान, अपीलकर्ता सहित विभिन्न नेताओं ने उन्हें RSS कार्यालय, RSS सदस्यों की गतिविधियों और भारत में हुई विभिन्न दंगा घटनाओं के बारे में तंजीम (PFI संगठन) द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के वीडियो और तस्वीरें दिखाई थीं। इसका उद्देश्य इस बात पर जोर देना था कि मुसलमानों को RSS द्वारा निशाना बनाया जा रहा है और ऐसे प्रशिक्षक प्रतिभागियों को बार-बार बताते थे कि लड़ाई RSS के खिलाफ है, जो देश में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन है और NEC भारत को एक इस्लामिक राष्ट्र बनाने और वर्ष 2047 तक गजवा-ए-हिंद के रूप में जाने जाने वाले भारत सरकार के खिलाफ "सशस्त्र संघर्ष" के माध्यम से खिलाफत को फिर से बनाने के लिए वफादार और शारीरिक रूप से प्रशिक्षित कैडरों की एक सेना खड़ी करना चाहता था।"
NIA ने कहा कि PFI और उसके सदस्यों ने आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाने की साजिश रची और कैडर को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण शिविर चलाए। उन पर मुस्लिम युवकों को आईएसआईएस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने का भी आरोप है। सितंबर 2022 में केंद्र ने ISIS जैसे वैश्विक आतंकी समूहों से संबंधों का आरोप लगाते हुए PFI पर प्रतिबंध लगा दिया। केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, दिल्ली और राजस्थान सहित कई राज्यों में छापेमारी की गई। राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध से पहले की गई कार्रवाई के दौरान, NIA ने 2022 में विभिन्न राज्यों से कई कथित PFI सदस्यों को गिरफ्तार किया था।
बता दें कि, इससे पहले पटना हाई कोर्ट ने भी PFI के 6 आतंकियों की जमानत ठुकराते हुए यही बातें कहीं थीं। पटना HC ने कहा था कि PFI ने भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए जिन 4 चरणों के तहत साजिश रची गई थी, उसके अनुसार, सबसे पहले भारत के मुस्लिमों को संगठित कर हथियारों की ट्रेनिंग देना था, दूसरा चुने गए स्थानों पर दूसरे धर्म के लोगों को निशाना बनाकर हमला कर आतंक फैलाना था। तीसरे चरण में SC-ST को बाकी हिन्दुओं के खिलाफ भड़काकर, हिंदुओं में विभाजन करना था। अंतिम चरण में देश की पुलिस, फौज और न्यायपालिका पर कब्ज़ा करना था और फिर सत्ता मिलते ही देश को इस्लामी राष्ट्र घोषित करना था। इस पूरी साजिश का विस्तृत जिक्र PFI के ‘मिशन 2047’ नाम के विजन डॉक्यूमेंट में भी दर्ज है कि किस तरह हिन्दुओं में फूट डालनी है, किस तरह जगहों को चुनकर वहां हिंसा करनी है। PFI के डॉक्यूमेंट में ये भी लिखा है कि, यदि 10 फीसद मुसलमान साथ आ जाएं, तो कायर हिन्दुओं को घुटनों पर ले आएँगे।
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