हमारी शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई कई खामियां हैं, जिसमें कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तित्वों के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाती। एक ऐसी महत्वपूर्ण घटना जो अक्सर नजरअंदाज की जाती है, वह है सारागढ़ी का युद्ध। यह युद्ध 12 सितंबर 1897 को हुआ था और इसमें 21 सिख सैनिकों ने अपने अदम्य साहस और वीरता के साथ 12,000 अफगान आक्रांताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
सारागढ़ी एक छोटा सा गांव था, जो हिंदुकुश पर्वत श्रृंखला पर स्थित था। ब्रिटिश शासन के दौरान, यहां 36 सिख रेजीमेंट के 21 सिख सैनिक तैनात थे। ये सैनिक केवल केशधारी सिख थे, और रेजीमेंट की पहचान उनके साहस और धर्म के प्रति समर्पण के लिए प्रसिद्ध थी। सिख सैनिकों ने इस चौकी को एक महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित एक सुरक्षा बिंदू के रूप में माना, जो गुलिस्तान और लाकहार्ट किलों के बीच संचार नेटवर्क के रूप में कार्य करता था।
सारागढ़ी का युद्ध- 12 सितम्बर 1897
— जाट समाज (@JAT_SAMAAJ) September 12, 2024
आज ही के दिन हुई थी दुनिया की सबसे भयानक लड़ाई, जिसमें एक तरफ 21 सिख जाट थे तो दूसरी तरफ 12000 अफगान।
UNESCO ने इस लड़ाई को अपनी 8 महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल किया।
सभी वीर शहीदों को नमन। #जाट_समाज pic.twitter.com/TpnWZdo7zD
अगस्त के अंत से 11 सितंबर तक, अफगान आक्रांताओं ने सारागढ़ी पर लगातार हमले किए, लेकिन सिख सैनिकों ने हर हमले को विफल कर दिया। 12 सितंबर को, करीब 12 से 15 हजार पश्तूनों ने लाकहार्ट के किले को चारों ओर से घेर लिया और हमला शुरू कर दिया। सिग्नल इंचार्ज गुरुमुख सिंह ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन होफ्टन को स्थिति की जानकारी दी, लेकिन सहायता की उम्मीद लगभग खत्म हो चुकी थी। लांस नायक लाभ सिंह और भगवान सिंह ने अपनी जान की परवाह किए बिना संघर्ष शुरू किया, जिसमें भगवान सिंह मुख्य द्वार पर दुश्मन को रोकते हुए शहीद हो गए।
सिख सैनिकों की वीरता ने अफगान कैम्प में हड़कंप मचा दिया। अफगान आक्रांताओं ने किले पर कब्जा करने के लिए दीवारों को तोड़ने की कई बार असफल कोशिशें कीं। हवलदार इशर सिंह ने नेतृत्व करते हुए सिख सैनिकों को "जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल" का नारा लगाते हुए दुश्मन पर हमला किया, और 20 से अधिक पठानों को मौत के घाट उतार दिया। गुरुमुख सिंह ने कहा कि भले ही उनकी संख्या कम हो रही थी, लेकिन वे अंत तक लड़ने के लिए तैयार थे।
"सारागढी दिवस " एक सैन्य स्मरण दिवस है जो हर साल 12 सितंबर को सारागढी की लडाई की याद में मनाया जाता है!
— THE SOCIETY OF WARRIORS ???? (@UnityJat) September 12, 2023
इस युद्ध में अफगानों ने जाट सैनिकों से कहा की आप आत्म समर्पण कर दो, मारे जाओगे संख्या में कम हो हमारी लडाई तुमसे नहीं अंग्रेजों से है,
तो हवलदार ईशर सिंह ने जवाब दिया की ये… pic.twitter.com/w1LJLsNOTT
सुबह से लेकर रात तक जारी इस भीषण लड़ाई के बाद, सभी 21 सिख सैनिक शहीद हो गए, लेकिन बलिदान होने से पहले इन वीर सिखों ने 600 से अधिक पठानों को मौत के घाट उतार दिया। वे कभी आत्मसमर्पण नहीं किए और अपने किले को बचाने में सफल रहे, हालांकि अफगानियों को भारी नुकसान सहना पड़ा और वे किले पर कब्जा नहीं कर सके। जब इस युद्ध की खबर यूरोप पहुंची, तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई। ब्रिटेन की संसद में सभी ने इन वीरों को सम्मानित किया और मरणोपरांत उन्हें इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया गया, जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था। यह युद्ध सैन्य इतिहास में एक महान और प्रेरणादायक घटना के रूप में दर्ज किया गया है। लेकिन, हमारी किताबों में इसे उतना स्थान नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए था।
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