छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा का ढहना, महज संयोग या विरोधियों का 'बांग्लादेशी' प्रयोग ?

छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा का ढहना, महज संयोग या विरोधियों का 'बांग्लादेशी' प्रयोग ?
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मुंबई: महाराष्ट्र के सिद्धदुर्ग में छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति गिरने के बाद से राज्य में राजनीतिक विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। घटना के बाद राज्य सरकार ने तत्काल कार्रवाई करते हुए FIR दर्ज की, जांच समिति बनाई, माफी मांगी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उसी जगह नई मूर्ति स्थापित करने का ऐलान भी किया। बावजूद इसके, यह घटना राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र बन गई है, और विपक्षी दल इसे सांप्रदायिक तनाव भड़काने के साधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

विजय वडेट्टीवार, अंबादास दानवे, जयंत पाटिल, सतेज पाटिल और आदित्य ठाकरे जैसे विपक्षी नेता इस घटना के बाद सिद्धदुर्ग पहुंचे और सरकार की आलोचना की। उन्होंने सोशल मीडिया पर मूर्ति के गिरने की तस्वीरें साझा कीं, जो सांप्रदायिक तनाव को भड़काने का प्रयास माना जा रहा है। गौरतलब है कि ये नेता मूर्ति गिरने से पहले वहां नहीं गए थे, लेकिन घटना के बाद वहां पहुंचकर प्रदर्शन किया और कथित तौर पर किले में पार्टी के झंडे लहराते हुए दुर्व्यवहार किया। इसे विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष भड़काने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

 

एनसीपी प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले और शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जातिगत मुद्दों को उछाला, जिसके चलते उनकी आलोचना हो रही है। इन नेताओं पर छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को नज़रअंदाज़ कर मुगल शासकों की प्रशंसा करने और राज्य में विभाजन पैदा करने के प्रयास का आरोप लगाया गया। खासकर शरद पवार पर ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश का आरोप लगा है।

इस स्थिति को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या ये विपक्ष द्वारा जनता को भड़काकर सरकार के खिलाफ खड़ा करने की साजिश है? लगातार तीन चुनावों में हार के बाद कुछ विपक्षी नेताओं का रुख भीड़तंत्र की ओर झुकता दिखाई दे रहा है। सलमान खुर्शीद और संजय राउत जैसे नेताओं ने भी बांग्लादेश जैसी स्थिति का उल्लेख किया है, जहां प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री आवास से भगाने की धमकी दी गई है। इसके साथ ही, सोशल मीडिया पर इसी तरह के अभियान देखे जा रहे हैं, और ट्रेन दुर्घटनाओं जैसी घटनाओं को सरकार पर हमला करने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि, ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जहाँ जानबूझकर पटरियों पर कुछ सामान रखकर ट्रेन हादसे करवाने की साजिशें रची गई हैं। ताकि विपक्ष इसे हथियार बनाकर सरकार के खिलाफ इस्तेमाल कर सके। लेकिन, सोचने वाली बात ये है कि क्या ये घटनाएं देश के साथ विश्वासघात नहीं ? क्या अब सत्ता के लिए इस हद तक भी जाया जाएगा ?

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