तेजी से बढ़ रहा हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का खतरा! आखिर क्यों अदालतें कह रहीं है- 'धर्मांतरण रोको', जानिए हर सवाल का जवाब

तेजी से बढ़ रहा हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का खतरा! आखिर क्यों अदालतें कह रहीं है- 'धर्मांतरण रोको', जानिए हर सवाल का जवाब
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इलाहाबाद: हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतरण को रोकने की आवश्यकता पर जोर देते हुए टिप्पणी की कि अगर यह प्रक्रिया जारी रही तो बहुसंख्यक हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक हो सकता है। इस टिप्पणी के साथ ही झारखंड हाई कोर्ट ने भी एक मामले में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर अपनी चिंता जाहिर की। अदालत ने कहा कि इन घुसपैठियों को चिह्नित करके वापस भेजा जाना चाहिए क्योंकि वे आदिवासी लड़कियों को फँसाकर उनका धर्मांतरण कराते हैं।

अदालतों की टिप्पणियों का महत्व
इलाहाबाद और झारखंड हाई कोर्ट की ये टिप्पणियाँ भले ही अलग-अलग मामलों में की गई हों, लेकिन इनकी गंभीरता को समझना महत्वपूर्ण है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की चिंता यह है कि यदि धर्मांतरण का खेल चलता रहा, तो बहुसंख्यक हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक हो जाएगा। वहीं, झारखंड हाई कोर्ट की चिंता है कि अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी लड़कियों को अपने जाल में फँसाकर उनका धर्मांतरण करा रहे हैं, जो क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदल सकता है।

स्वतंत्रता के 75 साल बाद की स्थिति
भारत को स्वतंत्र हुए 75 साल हो चुके हैं। इस अवधि में मुस्लिम समुदाय को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखा गया है, लेकिन उनकी जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। 1951 और 2011 की जनगणना के आंकड़े इस बात को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। 1951 में, भारत में हिंदुओं की आबादी 30.5 करोड़ (84.1%) थी, जबकि मुसलमानों की संख्या 3.54 करोड़ (9.8%) थी। वहीं, 2011 की जनगणना में हिंदुओं की संख्या 96.63 करोड़ (79.8%) हो गई, जबकि मुसलमानों की संख्या बढ़कर 17.22 करोड़ (14.2%) हो गई।

जनसंख्या में बदलाव
यदि हम इन दोनों जनगणनाओं की तुलना करें, तो पाएँगे कि हिंदुओं की जनसंख्या प्रतिशत में गिरावट आई है, जबकि मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत में वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1950 से 2015 के बीच हिंदू आबादी में 7.82% की गिरावट आई है। वहीं, इसी अवधि में मुस्लिम आबादी में वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, 1950 में मुस्लिम आबादी का हिस्सा 9.84% था, जो 2015 में बढ़कर 14.09% हो गया।

पड़ोसी मुल्कों की स्थिति
इस रिपोर्ट में पड़ोसी देशों के आंकड़े भी दिए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि भारत में अल्पसंख्यकों की संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी बढ़ी है और हिंदू अल्पसंख्यक घटे हैं। यह दर्शाता है कि भारत में जनसंख्या में परिवर्तन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जबकि अन्य देशों में ऐसी कोई समान प्रवृत्ति नहीं दिखती।

डेमोग्राफी बदलने का प्रभाव
डेमोग्राफी का बदलना सामान्य नहीं होता, खासकर जब इसके साथ क्षेत्र के तौर-तरीकों और रहन-सहन में भी परिवर्तन नजर आने लगे। उदाहरण के लिए, 1930 में कराची में महाशिवरात्रि के मेले की भीड़ देखी जा सकती थी, क्योंकि वह इलाका हिंदू बहुल था। लेकिन भारत से अलग होने के बाद, वह जगह मुस्लिम बहुल हो गई और आज वहाँ कोई हिंदू उत्सव मनाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। इसी प्रकार, भारत के कई क्षेत्रों में भी डेमोग्राफी में परिवर्तन देखने को मिल रहा है।

वर्तमान में डेमोग्राफी बदलाव
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, असम जैसे राज्यों के कई सीमा से सटे क्षेत्रों में पिछले 10 सालों में अप्रत्याशित परिवर्तन देखे गए हैं। 2022 की एक खबर के अनुसार, उत्तर प्रदेश और असम के बॉर्डर इलाकों में अचानक से 32% मुस्लिम आबादी बढ़ने की जानकारी आई थी, जबकि पूरे राज्य में यह दर 10-15% बढ़ी थी। उत्तराखंड में भी 11 साल में मुस्लिम आबादी में वृद्धि की खबरें सामने आई थीं।

इतिहास से सबक
इतिहास से हमें सीख लेनी चाहिए। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिंदुओं की स्थिति बहुत खराब है। इन देशों में अल्पसंख्यकों के साथ धर्मांतरण और अत्याचार की खबरें आम हैं। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान में आए दिन अल्पसंख्यकों के साथ धर्मांतरण और रेप की खबरें आती हैं। बांग्लादेश में भी इसी प्रकार की घटनाएँ हो रही हैं। अफगानिस्तान में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है।

हिंदुओं को सतर्क रहने की आवश्यकता
एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में इस्लामी कट्टरवाद की सफलता का एक हिस्सा ही देखा गया है, बाकी का उद्देश्य 'गजवा-ए-हिंद' यानी पूरे भारत पर इस्लाम का राज है। वर्तमान में हो रहा डेमोग्राफी बदलाव इसी उद्देश्य की दिशा में एक कदम है। यदि हिंदू सतर्क नहीं हुए तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

डेमोग्राफी बदलाव से उत्पन्न समस्याओं का समाधान करना आवश्यक है। हिंदू समाज को सतर्क रहना होगा ताकि भविष्य में धार्मिक संतुलन बना रहे और देश की सांस्कृतिक पहचान बनी रहे। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो देश के कई क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

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