मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसलों ने कांग्रेस को उलझन में डाला, संविधान और सुप्रीम कोर्ट पर क्या होगा पार्टी का रुख ?

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसलों ने कांग्रेस को उलझन में डाला, संविधान और सुप्रीम कोर्ट पर क्या होगा पार्टी का रुख ?
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नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने रविवार (15 जुलाई) को ऐलान किया है कि वे सुप्रीम कोर्ट के उस ताजा फैसले को चुनौती देंगे, जिसमें तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को "इद्दत" की अवधि के बाद गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अलावा मुस्लिम संस्था उत्तराखंड में पारित समान नागरिक संहिता (UCC) कानून को भी चुनौती देगी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की रविवार को एक बड़ी बैठक हुई थी, जिसमे तमाम मौलाना-मौलवी और इस्लामी बुद्धिजीवी शामिल हुए, इसी दौरान ये फैसले लिए गए कि, गुजारे भत्ते पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को और 'एक देश एक कानून' की वकालत करने संविधान के अनुच्छेद 44 को नहीं माना जाएगा। AIMPLB के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने बताया कि बैठक में उन्होंने आठ प्रस्तावों को मंजूरी दी है।

इलियास ने बताया कि, "पहला प्रस्ताव हाल ही में आए शीर्ष अदालत के फैसले के बारे में था, जो इस्लाम के शरिया कानून से टकराता है। इस्लाम में निकाह को पवित्र बंधन माना जाता है और तलाक को रोकने के लिए हर संभव कोशिशें होती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को "महिलाओं के हित" में बताया जा रहा है, मगर निकाह के नजरिए से यह फैसला महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। अगर तलाक के बाद भी पुरुष को गुजारा भत्ता देना है, तो वह तलाक ही क्यों देगा? और अगर रिश्ते में कड़वाहट आ गई है, तो इसका खामियाजा किसे भुगतना पड़ेगा? हम कानूनी समिति से सलाह-मशविरा करके इस फैसले को वापस लेने के बारे में विचार-विमर्श करेंगे।"

बात दें कि, सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को फैसला सुनाते हुए कहा था कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 मुस्लिम विवाहित महिलाओं सहित सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है और वे इन प्रावधानों के तहत अपने पतियों से भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय पुरुष 'गृहिणियों' की भूमिका और त्याग को पहचानें, जो भारतीय परिवार की ताकत और रीढ़ हैं और उन्हें संयुक्त खाते और ATM खोलकर उन्हें आर्थिक मदद प्रदान करें।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि CrPC की धारा 125, जो पत्नी के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार से संबंधित है, सभी महिलाओं पर लागू होती है और तलाकशुदा मुस्लिम महिला इसके तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है। वहीं, एक देश एक कानून यानी UCC पर सैयद कासिम इलियास ने कहा कि उनकी कानूनी समिति उत्तराखंड में कानून को चुनौती देगी। इलियास ने कहा कि, "विविधता हमारे देश की पहचान है, इसी ने हमारे संविधान ने सुरक्षित रखा है। UCC इस विविधता को खत्म करने की कोशिश है। UCC न सिर्फ संविधान के खिलाफ है, बल्कि हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के भी खिलाफ है। उत्तराखंड में पारित UCC सभी के लिए बहुत परेशानी का कारण बन रही है। हमने उत्तराखंड में यूसीसी को चुनौती देने का फैसला किया है। 

बता दें कि, इलियास कह रहे हैं कि UCC संविधान के खिलाफ है, जबकि संविधान का अनुच्छेद 44 स्पष्ट शब्दों में कहता है कि, सभी भारतीयों के लिए 'समान नागरिक कानून' लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। यही वजह है कि, सुप्रीम कोर्ट भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।  

इसके अलावा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता ने कांग्रेस सरकार द्वारा 1991 में बनाए गए उपासना स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए देश में धर्म के आधार पर विवाद पर भी प्रतिक्रिया दी। इलियास ने कहा कि, "बाबरी मस्जिद से पहले हमारे देश में उपासना स्थल अधिनियम 1991 नाम का एक कानून था। सभी लोगों को लगता है कि बाबरी मस्जिद भारत का अंतिम धार्मिक विवाद होगा। लेकिन, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नए विवाद अभी भी सामने आ रहे हैं। हम अदालत में दावा कर रहे हैं कि इन विवादों को उपासना स्थल अधिनियम के तहत स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। हम शीर्ष अदालत से मांग करते हैं कि वह धार्मिक अधिनियम को भी नवीनतम विवादों में शामिल करे।"

इसके अलावा उन्होंने मॉब लिंचिंग पर भी बात की। उन्होंने कहा कि, "हाल ही में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि मतदाताओं ने नफरत और दुश्मनी की भावना के खिलाफ मतदान किया है। इसके बावजूद मॉब लिंचिंग के मामलों में कमी नहीं आई है। चुनाव नतीजों के बाद मॉब लिंचिंग के 11-12 मामले दर्ज किए गए हैं। यह बर्बर कृत्य कानून के शासन को कमजोर करता है, अगर किसी ने अपराध किया है, तो उसे सजा देना कानून का अधिकार है।"

आखिर में, फिलिस्तीन-इजराइल युद्ध पर बोलते हुए, इलियास ने केंद्र सरकार से मांग की है कि भारत, इजराइल के साथ सभी रणनीतिक संबंध समाप्त कर दे और युद्ध ख़त्म करने के लिए यहूदी देश पर दबाव डाले। 

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कांग्रेस के लिए खड़ी कर दी समस्या :-

दरअसल, AIMPLB का ये फैसला देश पर सबसे अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है। गुजरा भत्ता मामले में यही वाला फैसला सुप्रीम कोर्ट ने अस्सी के दशक में भी शाह बानो केस में दिया था, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संसद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था। इससे नाराज़ होकर राजीव गांधी सरकार में कैबिनेट मंत्री आरिफ मोहम्मद ने इस्तीफा दे दिया था। प्रगतिशील सोच के आरिफ मोहम्मद, कुरान के अच्छे जानकार हैं, उन्होंने उस समय कहा था कि, गुजारे भत्ते पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश के कानून और कुरान दोनों के हिसाब से सही है, लेकिन कट्टरपंथियों के आगे राजीव गांधी सरकार ने घुटने तक दिए और फैसला पलट दिया। ये संविधान के ऊपर मुस्लिमों के लिए अलग से शरिया कानून लागू करने की योजना जैसा था।

आरिफ मोहम्मद के अनुसार, उस समय कट्टरपंथियों ने इंडिया गेट पर मीटिंग की थी, जिसमे वो लोग कह रहे थे कि, अगर ये फैसला नहीं बदला गया, तो हम सुप्रीम कोर्ट की ईंट से ईंट बजा देंगे. संसद के सदस्यों की टांग तोड़ देंगे। आरिफ मोहम्मद का कहना था कि, राष्ट्रविरोधी और देशविरोधी सुर में बोलने वाले लोगों, हिंसा की बात करने वाले लोगों, के सामने घुटने टेकना (फैसला बदलना) ये अपने आप में राष्ट्रीय अपराध था। अब 40 साल बाद वही स्थिति पैदा हो गई है और पहले से गंभीर भी, आज क्योंकि मुस्लिमों की आबादी काफी बढ़ गई है। अगर वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सडकों पर उतरते हैं, और संविधान के अनुच्छेद 44 में दिए गए समान नागरिक कानून के खिलाफ आंदोलन शुरू करते हैं। तो आज संविधान की प्रतियां लेकर घूम रही कांग्रेस क्या करेगी ? क्या वो न्यायपालिका और संविधान की रक्षा के लिए उसके समर्थन में उतरेगी, या फिर अपने वोट बैंक के लिए सड़कों पर उनके साथ खड़ी होगी ? क्योंकि, मुस्लिम समुदाय शुरू से कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक रहा है। 

देश का बहुसंख्यक समुदय काशी, मथुरा जैसी अपनी प्राचीन धरोहरों पर दावा ना ठोक सके, इसलिए कांग्रेस सरकार ने 1991 में पूजा स्थल कानून भी बनाया था, जिसका आज मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हवाला दे रहा है। इजराइल फिलिस्तीन मामले पर भी कांग्रेस, बिना हमास के आतंकी हमले की निंदा किए, फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पारित कर चुकी है। कांग्रेस नेता यहाँ तक कह चुके हैं कि, हमास कोई आतंकी संगठन नहीं है। मुस्लिम समुदाय भी उन्हें आतंकी नहीं, बल्कि स्वतंत्रता सेनानी मानता है। वैसे तो भारत में भी कई लोग जम्मू कश्मीर के आतंकियों को आतंकी नहीं, बल्कि आज़ादी के लिए लड़ने वाले मुजाहिद कहते हैं, कुछ खुलकर तो कुछ दबी जुबान में। तो क्या इसे सच मान लिया जाए ? 

अब बात कर लेते हैं, UCC की, तो भारत के एक राज्य गोवा में आज़ादी के बाद से ही समान नागरिक संहिता लागू है, तो वहां क्या समस्या पैदा हुई है ? अगर पूरे देश में हर भारतीय के लिए एक कानून होता है, तो उसमे परेशानी क्यों ? जबकि संविधान से लेकर, सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट्स  इसे लागू करने की वकालत कर चुके हैं। अंत में एक सवाल जो मुस्लिम समुदाय के लिए भी चिंतनीय है। अक्सर कई मुस्लिम नेता कहते हैं कि, हमने इस्लामिक पाकिस्तान की जगह धर्मनिरपेक्ष भारत में रहना चुना था, तो जब धर्मनिरपेक्ष चुना ही था, तो धर्मनिरपेक्ष कानून मानने में आपत्ति क्यों ? फिर अलग से इस्लामी कानून क्यों चाहिए ?

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