पटना: बिहार के पहले गैर कोंग्रेसी सीएम कर्पूरी ठाकुर की 24 जनवरी 2023 को 100वीं जयंती है। भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने एक लेख लिखकर जयंती पर उनका स्मरण किया है। X पर इसे शेयर करते हुए लिखा है, “देशभर के मेरे परिवारजनों की तरफ से जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी जन्म.शताब्दी पर मेरी आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। इस विशेष अवसर पर हमारी सरकार को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का सौभाग्य मिला है। भारतीय समाज और राजनीति पर उन्होंने जो अविस्मरणीय छाप छोड़ी है, उसे लेकर मैं अपनी भावनाओं और विचारों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ।” हमारे जीवन पर कई लोगों के व्यक्तित्व का प्रभाव रहता है। जिन लोगों से हम मिलते हैं, हम जिनके संपर्क में रहते हैं, उनकी बातों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। किन्तु कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जिनके बारे में सुनकर ही आप उनसे प्रभावित हो जाते हैं। मेरे लिए ऐसे ही रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर।
आज कर्पूरी बाबू की 100वीं जन्म-जयंती है। मुझे कर्पूरी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला, किन्तु उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले कैलाशपति मिश्र जी से मैंने उनके बारे में बहुत कुछ सुना है। सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू ने जो कोशिश की, उससे करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा परिवर्तन आया। उनका संबंध नाई समाज, यानि समाज के अति पिछड़े वर्ग से था। अनेक चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने कई कामयाबियों को हासिल किया तथा जीवनभर समाज के उत्थान के लिए काम करते रहे। जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का पूरा जीवन सादगी एवं सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा। वे अपनी आखिरी साँस तक सरल जीवनशैली एवं विनम्र स्वभाव के चलते आम लोगों से गहराई से जुड़े रहे। उनसे जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो उनकी सादगी की मिसाल हैं। उनके साथ काम करने वाले लोग याद करते हैं कि कैसे वे इस बात पर जोर देते थे कि उनके किसी भी व्यक्तिगत कार्य में सरकार का एक पैसा भी उपयोग ना हो। ऐसा ही एक वाकया बिहार में उनके मुख्यमंत्री रहने के चलते हुआ। तब राज्य के नेताओं के लिए एक कॉलोनी बनाने का निर्णय हुआ था, किन्तु उन्होंने अपने लिए कोई जमीन नहीं ली। जब भी उनसे पूछा जाता कि आप जमीन क्यों नहीं ले रहे हैं, तो वे बस विनम्रता से हाथ जोड़ लेते। 1988 में जब उनका निधन हुआ तो कई नेता श्रद्धांजलि देने उनके गाँव गए। कर्पूरी जी के घर की हालत देखकर उनकी आँखों में आँसू आ गए कि इतने ऊँचे पद पर रहे व्यक्ति का घर इतना साधारण कैसे हो सकता है!
देशभर के मेरे परिवारजनों की ओर से जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी जन्म-शताब्दी पर मेरी आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। इस विशेष अवसर पर हमारी सरकार को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। भारतीय समाज और राजनीति पर उन्होंने जो अविस्मरणीय छाप छोड़ी है, उसे लेकर मैं…
— Narendra Modi (@narendramodi) January 24, 2024
कर्पूरी बाबू की सादगी का एक और लोकप्रिय किस्सा 1977 का है, जब वे बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। तब केंद्र और बिहार में जनता सरकार सत्ता में थी। उस वक़्त जनता पार्टी के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानि जेपी के जन्मदिन के लिए कई नेता पटना में इकट्ठा हुए। उसमें समिल्लित सीएम कर्पूरी बाबू का कुर्ता फटा हुआ था। ऐसे में चंद्रशेखर जी ने अपने अनूठे अंदाज में लोगों से कुछ पैसे दान करने की अपील की, जिससे कर्पूरी जी नया कुर्ता खरीद सकें। लेकिन कर्पूरी जी तो कर्पूरी जी थे। उन्होंने इसमें भी एक मिसाल कायम कर दी। उन्होंने पैसा तो स्वीकार कर लिया, किन्तु उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया। सामाजिक न्याय तो जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के मन में रचा-बसा था। उनके राजनीतिक जीवन को एक ऐसे समाज के निर्माण के प्रयासों के लिए जाना जाता है, जहाँ सभी लोगों तक संसाधनों का समान रूप से वितरण हो और सामाजिक हैसियत की परवाह किए बिना उन्हें अवसरों का लाभ प्राप्त हो। उनके प्रयासों का उद्देश्य भारतीय समाज में पैठ बना चुकी कई असमानताओं को दूर करना भी था। अपने आदर्शों के लिए कर्पूरी ठाकुर जी की प्रतिबद्धता ऐसी थी कि उस कालखंड में भी जब सब तरफ काॅन्ग्रेस का राज था, उन्होंने काॅन्ग्रेस विरोधी लाइन पर चलने का फैसला किया। क्योंकि उन्हें बहुत पहले ही इस बात का अनुमान हो गया था कि काॅन्ग्रेस अपने बुनियादी सिद्धांतों से भटक गई है।
कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक यात्रा 1950 के दशक के शुरुआती वर्षों में उनके चुनावी अभियान से शुरू हुई और यहीं से वह राज्य विधानमंडल में एक सशक्त नेता के रूप में उभरे। वह मजदूर वर्ग, मजदूरों, छोटे किसानों और युवाओं के संघर्षों के लिए एक शक्तिशाली आवाज बन गए। शिक्षा कर्पूरी ठाकुर के दिल के करीब का विषय था और उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में वंचितों को शिक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह स्थानीय भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने के कट्टर समर्थक थे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गांवों और छोटे शहरों में लोग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें और सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकें। मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने बुजुर्ग नागरिकों के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए और लोकतंत्र के प्रति अपने समर्पण को प्रदर्शित करते हुए आपातकाल लगाए जाने का पुरजोर विरोध किया। जे.पी., डॉ. लोहिया और चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं से प्रभावित होकर कर्पूरी ठाकुर ने भारतीय राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
समाज के उपेक्षित और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए जन नायक कर्पूरी ठाकुर ने एक व्यापक योजना बनाई। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां हर किसी को, चाहे उनका जन्म कुछ भी हो, समान प्रतिनिधित्व और अवसर मिले। हालाँकि उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा, फिर भी वे उन नीतियों को लागू करने में दृढ़ रहे, जिन्होंने किसी के जन्म से जुड़ी नियति की बेड़ियों को तोड़कर एक समावेशी समाज की नींव रखी। स्वयं सबसे वंचित वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर ने समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए काम किया। उनके नेतृत्व में किसी के प्रति कोई कटुता नहीं झलकती थी, जिससे वे सचमुच महान बन गये। हमारी सरकार जन नायक कर्पूरी ठाकुर से प्रेरणा लेकर देश भर में सकारात्मक बदलाव की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही है। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं के बाद सामाजिक न्याय पर ध्यान महज एक राजनीतिक नारा बनकर रह गया। हालाँकि, हमारी सरकार ने उनके दृष्टिकोण से प्रेरित होकर इसे एक प्रभावी शासन मॉडल के रूप में लागू किया है।
हम वर्तमान में समावेशिता के लिए प्रयास कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक योजना से 100% इच्छित लाभार्थियों को लाभ मिले। इस दिशा में हमारे प्रयास सामाजिक न्याय के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के अनुरूप हैं। मुद्रा ऋण योजना के माध्यम से जैसे-जैसे ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय के उद्यमी उभर रहे हैं, कर्पूरी ठाकुर का आर्थिक आजादी का सपना साकार हो रहा है। हाल ही में शुरू की गई पीएम-विश्वकर्मा योजना जैसी पहल ओबीसी समुदाय के लाखों लोगों के लिए समृद्धि के नए रास्ते खोलेगी। पिछड़े समुदाय से होने के नाते मैंने कर्पूरी ठाकुर के जीवन से बहुत कुछ सीखा है। उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान ने कई लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और मैं इसके लिए हमेशा आभारी रहूंगा। दुर्भाग्यवश, हमने कर्पूरी जी को 64 वर्ष की आयु में खो दिया, ठीक उस समय जब देश को उनकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत उनके कल्याण-उन्मुख कार्यों के माध्यम से लाखों लोगों के दिल और दिमाग में जीवित है। वह एक सच्चे जन नायक थे।
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