'समाज के प्रति करुणा की भावना ही सबसे महत्वपूर्ण..', IIT धनबाद में बोले CJI चंद्रचूड़

'समाज के प्रति करुणा की भावना ही सबसे महत्वपूर्ण..', IIT धनबाद में बोले CJI चंद्रचूड़
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धनबाद: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने समाज के प्रति करुणा और न्याय की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने बॉम्बे बार एसोसिएशन, एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया और बॉम्बे इनकॉरपोरेटेड लॉ सोसाइटी के एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि न्याय के कार्य में समाज के प्रति करुणा की भावना ही सबसे महत्वपूर्ण है। यह भावना हमें सही न्याय देने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करती है।

चंद्रचूड़ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के बारे में बात करते हुए कहा कि उनकी नजर में इस हाई कोर्ट की स्वतंत्रता और निडरता अतुलनीय है। इमरजेंसी के दौरान भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने न्याय की रक्षा के लिए धैर्य और निडरता दिखाई। उन्होंने कहा कि न्यायालय के काम में जांच का महत्वपूर्ण स्थान होता है। न्यायाधीश के हर फैसले और हर शब्द की जांच होती है, और यह जांच न्यायिक प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करती है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही के एक आदेश का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होंने एक दलित छात्र को राहत दी थी, जो IIT धनबाद में प्रवेश के लिए अपनी फीस चुकाने में कुछ मिनट की देरी के कारण अपनी सीट खो बैठा था। उन्होंने कहा कि उस छात्र के लिए राहत न देने के कई कारण हो सकते थे, लेकिन करुणा की भावना ने उन्हें उस छात्र के पक्ष में फैसला देने के लिए प्रेरित किया। सीजेआई ने न्यायाधीश के रूप में काम करने की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि एक वकील के तौर पर किसी मामले को मना करना संभव है, लेकिन एक न्यायाधीश के रूप में हर मामले को गंभीरता से उठाना पड़ता है, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। 

महिलाओं के मुद्दे पर बोलते हुए, उन्होंने कहा कि समाज में महिलाओं को पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ पेशेवर जिम्मेदारियों को भी संभालना पड़ता है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि महिलाओं को बार में सफल होने के लिए पुरुषों जैसा व्यवहार क्यों करना पड़ता है? पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ क्यों छोड़ना पड़ता है? उन्होंने समाज में महिलाओं के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। मुख्य न्यायाधीश के भाषण में करुणा, न्याय और समाज की भलाई के प्रति प्रतिबद्धता को प्राथमिकता देने की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई दी। उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया को मानवीय और सशक्त बनाने की दिशा में अपने विचार प्रस्तुत किए।

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